तत्त्वज्ञान तरंगिणी | Tattvagyan Tarangini

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Tattvagyan Tarangini by गजाधर लाल - Gjadhar Lal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ ] [ तत्व ज्ञान तरंगिणी श्र्थ > यद्यपि यह चिद्रूप, शेय-ज्ञानका विषय हश्य- दर्शनका विपय है'। तथापि स्वभावसे ही यह पदार्थोका जानने श्रौर देखने वाला है, परन्तु अन्य कोई पदार्थ ऐसा नही जो ज्ञेग भौर दृश्य होने! पर जानने देखने वाला हों, इसलिये यह चिद्रूप समस्त द्रव्योमें उत्तम है । भावार्थ--जीव, पुदुगल, धर्म, श्रधर्म, श्राकाश और कालके भेदसे द्रव्य छह प्रकारके हैं । उन सबमें जीव द्रव्य सब द्रव्योमे उत्तम है, क्योंकि दूसरोसे जाना देखा जाने पर भी यह ज्ञाता और हृष्ठा है | परन्तु इससे अन्य सत्र द्रव्य जड है, इसलिये वे ज्ञान और दर्शनके ही विषय है, अन्य किसी पदार्थकों देखते जानते नहीं 11१०1॥। स्पृत्ते: पर्यायाणास्वनिजलभृतामिद्रियार्थागसां च त्रिकालानां स्वान्योंदित दचनतते! शब्दद्ास्न्नादिकानां । सुतोर्थानामस्त्रप्रभुखक्ृत्तरजा क्ष्माउहार्णां भुणानां विनिश्चेयः स्वात्मा सुविमलमतिभिद्द र्टबोधस्वरूप; १ ६। ग्रथं--जिनकी चुद्धि विमल है-स्त्र शोर परका विवेक रखनेवाली है, उन्हे चाहिये कि वे दर्शव ज्ञान स्वरूप अपनी आत्माकों बाल, कुमार और युवा श्रादि श्रवस्थाओ, क्रोष, मान, माया आदि पर्यायोके स्मरणसे, पर्वत झौर समुद्रके श्ञानसे, उप रस गध आदि इन्द्रियोकें विषय और अपने अपराधोके स्मरणसे, भूत भविष्यत्‌ और वर्तेमान तीनो कालोके ज्ञानसे, अपने पराये वचनोके स्मरणसे, व्याकरण न्याय आदि शास्त्रोके मतन ध्यानसे, निर्वाणभुमियों के देखने जाननेसे, शस्त्र आादिसे उत्पन्न हुये घावोके ज्ञान




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