पुराणलोचन - ग्रन्थमाला | Puranalochan - Granthamala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र आश्चर्य ! कौन वह मूछ संद्दिता ( शाखा 2 इस नामसे न 'कष्ठी जानेवाडी उस मद्दात्माने स्वोकार की है जिसको मूछ चेद्‌ भसानकर “शाखा” इस नामसे प्रसिद्ध अन्य सब संहिताओंको उस का व्याख्यान अन्य सासा जाये उस ( मूल वेद संहिता ) का पता 'इमको तो अद्यावधि नहीं है । इसका तात्पयें स्पष्ट शब्दोंमें यह है फि आजतक जितने चेद्‌ ऋगू यजु:, खाम और अथवे नामसे मिलते हैं वह किसी न किसी शाखाके नाम से युक्त दी मिलते हैं । अर्थात्‌ जिसको ऋषि दयानन्द ऋग्वेद कद्दते हैं, उसको छोक में शाकलछूसंहिता कह्टते हैं। और चजुर्वेदको वाजसनेय यजःसंद्विता, सामवेदका दाम कोथुमी सामवेद संहिता और अथर्ववेदका नाम शौनकसंहिता है । इसलिए जब्॒ शाखओं से अतिरिक्त वेद ही नहीं, तो किस शाखा को मूल वेंद्‌ माचकर शेपका व्याख्यान माना जावे | खामी दयानन्द को शायद कोई इनसे भिन्न वेद मिला दोगा । सत्यत्रतजी लिखते हैं और उनके अनुयायी ( इस अंश में ) स्वामी हरप्रसाद जी भी यही निश्चय करते हैं कि “जब यह अत्यक्ष देखने में आता है कि सब शाखा अन्थोंमें कोई प्रन्थ व्याख्यान और व्याख्येय नहीं है, किन्तु क्वाचित्क पाठभेद्‌ और पाठ न्‍्यूनाधिक कों छोड़कर सब एक दूसरेफे समान है तव ग्यारह सी इकतीस सें चार व्याख्येय और शेष ग्यारह सौ सताईस व्याख्यान हैं यह कटपना करना और सानना कैसे समझस कहा जा सकता है वास्तव में सहाभाष्य कृत पतललि सुमिका उललेश्न शाकछादि प्रवचन कर्ता ऋषियोंके भेद्से बेदोंके ग्यारह सौ इकततीस भेदोंकी कदता है उसको स्थामी दया- जनन्‍्दके शाखापद के अर्थ का आधार मानना अथवा मानने का साइस करना मूल है” प्राचीन अथवा नवीन अम्थोंके स्वाध्यायपे




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