ग्रहण फल दर्पण | Grana Fala Darpan

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Grana Fala Darpan by मीठालाल अटलदास व्यास - Meethalal Ataldas Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ भरी अदा देव त्य/ शिवजी के बर प्रदान से “यह नामक पद चन्द्र प्रदण के! समय तो पृथिवी की छाया में और सूर्य प्रहण फे समय चन्द्रमा के पिम्द में श्रवेश कर जाता है। इसी लिये पुराण आदि घम्म शाख्यों में ग्रहण का कारण राष्ट्र मानकर उस के निमित्त र्वान दान कप तप हवनादि फरने से अक्षय पुन्य कहने का विधान सहाय इॉफ्े से चर्णय कर दे ३ पदार्थ विद्या के सिद्धान्ताठइसार अहण के समय सूर्य चन्ध और पृथिवी की ज्ञो एक प्रकार की एक दूसरें के साथ आक- दंण शक्ति वा बिद्युत्‌ शाक्ति है उस में कुछ अन्तर पड़ जाता दे जिस के कारण जगत्‌ में भी अनेक प्रकार का परिवर्तन हो जाता है परन्तु किस प्रकार फे अहण फे समय किस प्रकार का परि- पस्तेन होगा इसका शान सर्य साधारण को हो जाने के लिये परी- पारी मदर्पियोंने अनेक शारहो में बहुत विस्तार से वर्णन फरा है। परन्तु आज़ कल के मिर्यमी मनुष्यों के लिये उन अलक्ष्य अन्यों का एकल करना दी महान्‌ दुलेस छ तो फिर उन सद्दान विप्यों से युक्त अनेक ग्रस्थों में से महण से सम्बन्ध रखने बाले समग्र विषयों ही को छांटकर ए्कज कर सेना कितना दुर्लम दे! यह बात किस्ती से भी छिपी हुई नहीं है। इस्पलिये मेने अनेक प्रार्चीस ग्रन्थों का साररुप “इददुच्ये मार्चण्ड” नामक्छ एक मदन विस्तृत अन्य सरल ब्यय भाषा शीका सहित निर्माण फिया है। चह्द अन्य ल्लेकोपकारा्थ अंक अंक रूपसे प्रकाशित किया जाता है| इन में * सबेतो भद्रचक्र ( तैद्ोक्य दीपक )! 'श्ष्टि प्रवोध ( भारत फा घायु शाख)/ और 'संक्रान्ति भ्रकाश/ मामक तीन अक+% तो प्रथम प्रफाशित फिये जा चुके उसी भ्रकार यह 'प्रहण निबन्ध! नामक चोथा अंक भी प्रकाशित करने के लिये तीन सार्गों # र्वतों मद्नचक्र'ं तथा डंडे प्रबोधों नामक अक ती प्रझराशित होत ही दाधोहप्थ विक्र गये। परन्तु ब्राइकों की माग दिन पारित यदती हो गई इसलिये वृष्टि प्रभोध को पहिले से मी अधिक बदाका दूरी वार कृपतबाया है जो थोड ही दियोमे सब प्राइकों की सेद्ा में मेज्री जाचुकेगी। और 'धक्राम्त अकाश' को भी इनी गिनो प्रत्तिये शेष हैं वे भी श्ौप॑ हो बिक जावेगी)




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