पराशरस्मृति | Parasarsmiriti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
81
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रे छघृुपाराशरी । अ०१
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करनवाले व सब ऋषि न को | अथसंतुश्त्वदयःपराशरमहा-
आगे करके वदरिक्राश्रम को गये॥ ५ ॥ | मनि।आह स्वागत बहीत्यासी-
नाना पृष्पलताकीएं फलपुष्पैर- सो पनिषेगव, कक
लंकृतम | नद। प्रखाणापत पुर्य- | __ ७
तीर्थेपरो।मितम ॥ ६॥ तदनंतर सेतृष्ट है हुद्य जिनका, ऐसे
या 1 .. « | महासुनि पराशरजी बोले कि-तुम भ-
बह से परिषण, प्रकार के पुष्प को | की प्रकार कुशल पूर्वक आये 1 ॥ १०॥
लताओं से परिपूर्ण, फल पुष्पो से अ्ं- » ब्यासः
कृत, नदी ओर झरनों से विभूषित, प- कुशल सम्यागेलुक्ला घ्ः
वित्र तीथों से शोमित॥ ३१ ॥ इच्चत्यनत्र ॥ याद जानास
मृगपत्षिनिनादाब्य देवताय- | मे भक्ति स्नेहादा मक़्वत्सल ११
तनावतम। यक्षगंधवसिद्धेश्र दृत्य- | औैाड प्रश्न के अनच्तर सब्र मकार
गीतेरलंकतम ॥ ७॥ कुशक है! ऐसा कहकर व्यासजी ने
तिरलहतप |... ! पूछ क्रिहे भक्तवत्सल | यदि आप
मृग और पा्तियों.के की देव भेरी भक्ति जानते, तो या मेरेस्नह से १ !
मन्दिरों से आहत, यक्ष, गंधवों के नृत्य घर हे _
गान से शोभिव और सिद्धणणों से| _ - , | में तैँति जले
अलेकझृत था | ७॥ के अब्वाब्य॒ह तत्र।श्षता में मानवाप-
तस्मिन्न पिसभामध्ये शक्तिपन्न | | वाशध्ठाः काश्पप्रासतशू ६९
कि सतठात्ेदा, |. हें तात॑ मुझ से धर्मों का वणेन की-
का | छुजासने महातजा | जिये, क्योंकि- में आप का कृपापात्र हूँ,
मानमुस्यगणाइतम। ८. | अतएब आप को मुझ पर अवश्य कृपा
उस आश्रम में ऋषियों की सभा के | करनी चाहिये, मैंने स्वायेश्व मन्नु,वक्षि-
पा लय) कप मध्य मे सुख | हु, कद्यप || १२॥
पूवरक बेठे हुए, शक्ति ऋषि के पुत्र,महा- शतरात उपैनपि
तेमसस््वी मुनिवर पराशरजीका ॥ ८ ॥ | «.« गाव ताः । अम्नेर्विष्णो.
कृतांजालिपुटोभ्नला व्यासस्तु चाशनसा स्ट्ताः । अन्रांवष्णा
आपिभिः पह। प्रदाक्षिणा भिवरादे श्र श््व जा ।१ दे |
तिभिः समपज तथा गगाचाये, गातम, श्ुक्राचाये,
हरेक कम जा जोड़ हु अत्रि,विष्णुऋषि,संवतते, दक्ष, अगिरा १ ३
प्रदक्षिण आभेवादन ओर स्तुति पूवेक | शातातपाच्च हारतावाज्ञवः
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पूजन किया | ९॥ ' ल्कयात्तथेव च् । आपस्तेवकृता-
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