पराशरस्मृति | Parasarsmiriti

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Parasarsmiriti by शिवलाल गणेशीलाल - Shivlal Ganeshilal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रे छघृुपाराशरी । अ०१ 20.6 + 60 3.0 & 48.3. & 0 4.0 * है & $ & 6 & & & है. & #. / है. & /५# # # # औ क # 4 / है. 6 8 & 4 8 & & 4.6 # & & 0 ॥. 0 4.4 करनवाले व सब ऋषि न को | अथसंतुश्त्वदयःपराशरमहा- आगे करके वदरिक्राश्रम को गये॥ ५ ॥ | मनि।आह स्वागत बहीत्यासी- नाना पृष्पलताकीएं फलपुष्पैर- सो पनिषेगव, कक लंकृतम | नद। प्रखाणापत पुर्य- | __ ७ तीर्थेपरो।मितम ॥ ६॥ तदनंतर सेतृष्ट है हुद्य जिनका, ऐसे या 1 .. « | महासुनि पराशरजी बोले कि-तुम भ- बह से परिषण, प्रकार के पुष्प को | की प्रकार कुशल पूर्वक आये 1 ॥ १०॥ लताओं से परिपूर्ण, फल पुष्पो से अ्ं- » ब्यासः कृत, नदी ओर झरनों से विभूषित, प- कुशल सम्यागेलुक्ला घ्ः वित्र तीथों से शोमित॥ ३१ ॥ इच्चत्यनत्र ॥ याद जानास मृगपत्षिनिनादाब्य देवताय- | मे भक्ति स्नेहादा मक़्वत्सल ११ तनावतम। यक्षगंधवसिद्धेश्र दृत्य- | औैाड प्रश्न के अनच्तर सब्र मकार गीतेरलंकतम ॥ ७॥ कुशक है! ऐसा कहकर व्यासजी ने तिरलहतप |... ! पूछ क्रिहे भक्तवत्सल | यदि आप मृग और पा्तियों.के की देव भेरी भक्ति जानते, तो या मेरेस्नह से १ ! मन्दिरों से आहत, यक्ष, गंधवों के नृत्य घर हे _ गान से शोभिव और सिद्धणणों से| _ - , | में तैँति जले अलेकझृत था | ७॥ के अब्वाब्य॒ह तत्र।श्षता में मानवाप- तस्मिन्न पिसभामध्ये शक्तिपन्न | | वाशध्ठाः काश्पप्रासतशू ६९ कि सतठात्ेदा, |. हें तात॑ मुझ से धर्मों का वणेन की- का | छुजासने महातजा | जिये, क्योंकि- में आप का कृपापात्र हूँ, मानमुस्यगणाइतम। ८. | अतएब आप को मुझ पर अवश्य कृपा उस आश्रम में ऋषियों की सभा के | करनी चाहिये, मैंने स्वायेश्व मन्नु,वक्षि- पा लय) कप मध्य मे सुख | हु, कद्यप || १२॥ पूवरक बेठे हुए, शक्ति ऋषि के पुत्र,महा- शतरात उपैनपि तेमसस्‍्वी मुनिवर पराशरजीका ॥ ८ ॥ | «.« गाव ताः । अम्नेर्विष्णो. कृतांजालिपुटोभ्नला व्यासस्तु चाशनसा स्ट्ताः । अन्रांवष्णा आपिभिः पह। प्रदाक्षिणा भिवरादे श्र श््व जा ।१ दे | तिभिः समपज तथा गगाचाये, गातम, श्ुक्राचाये, हरेक कम जा जोड़ हु अत्रि,विष्णुऋषि,संवतते, दक्ष, अगिरा १ ३ प्रदक्षिण आभेवादन ओर स्तुति पूवेक | शातातपाच्च हारतावाज्ञवः ७2३५ पूजन किया | ९॥ ' ल्‍कयात्तथेव च्‌ । आपस्तेवकृता-




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