संस्कृत निबन्ध पथ प्रदर्शक | Sanskrit Nibandh Path Pradarshak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
44 MB
कुल पष्ठ :
519
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द्वितीय पाठ १७
अभ्यास
९---तयेब देवतया तयो; कुशज्वाविति नामनी प्रभावश्चवाख्यातः ।
(उत्तर राम० २ ) |
२--यदेते चन्द्रमरोरक्षऋास्त्वया निःसारितास्तदनुचित क्ृतम्।
(हितोपरेश ) ।
३--यस्मिन्नेवाधिक चक्तुरारोपयति पाथिवः ।
४---अकुल्ली नः कुल्लीनो वा स श्रियों माजनं नरः (पचतत्र )।
५--ऊताः शरव्य हरिणा तवासुराः ।
5---शरासन तेपु विकृष्यतामिदम् (शाकुन्तलम् ६ )।
5--स सुदृढ़ ठयसने यश स्पात् स पुत्रो यस्तु भक्तिमान् ।
समृत्या या विधेयज्ञ: सा भायों यत्र निवृतिः ॥
८--पराण्डवाश्च सहात्मानो द्रोपदी च यशस्त्रिनी ।
कृतोपवासा, को रठ्य प्रययु: प्राड मुखास्ततः ॥ (महाभारत १७ | १ ।३७)
€--धम* कामश्च दपश्च हपे क्रोध: सुखं बयः ।
अथादेतानि सवाशि ग्रव्॒तन्ते न सशयः ।। ( रामा-६ | ६२। ३७ )
५०--उमावृषाकों शरजन्मना यथा यथा जयन्तन शची पुरन्द्रों ।
था नूपः सा च सुतेन मागधों नननन्इतुस्तत्सद्शेन तत्समां ( स्घु-
वश ३। २३ )
अभ्यासाथ अतिरिक्त वाक्य
१-न्या सा या 55्यपुत्रण वहु मन््यते या चारयपुत्र विनोदेयत्याशानिबन्धन॑ जाता
जीवलोकस्य ।
>_सो5य पुत्रस्तव मदमुच्रा वारणाना विजेता |
यत्कल्याण वयसि तरुण. भाजन तस्य जात (छत्तर० ३)।
3--न प्रमाणीकृून पाणरि्बॉलयेबालेन पीडिंत ।
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