काव्य और संगीत का पारस्परिक सम्बन्ध | Kavay Our Sangith Ka Parshprik Sambhndh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
381
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मुरकगाप 8 ।
गतिहाष्य शा ही समीत में सर्वाशिक ग्म्शग्प होता है । इसा परिष्देद गे का
जाय में सां।तकाम्प के स््वश्प का विगेषम तथा 'ख' मा में रीतिवास से पूर्वकर्सी
हिम्दी यौ।विकाब्प शा सझिण इविहास उस्लिखित है ।
झोप-सरइ का आरम्म चौपे परिषऐद से होता है । यह परिझऐेश रीनिकासीम
परिस्थितियों स सम्शीबत है जिसम साचासीय राजनीतिक आर्थिक सामाजिक
मौर बासिर परिस्यितियों का उप्पेख करते हुए यह दिखाया गया है हि इस सब
में प्रेरित होशर रीतिशास बी बसागत प्रगुलिया दिस हिशा में असर हो रही
जी । इस परिध्छे” में बास्युजसा मूतिक्सा चित्रकला तास्य घ्ौर संयीत की
दखायत प्रदृत्ति यों क पारस्परिक साम्य पर प्रशाग श्ता पया है !
>थीबर्षां परिभ्तेश रीतिषालोग मयीत मे सम्दन्पित है । एसक 'क माश में
झस मु का ऐतिहासिक आय मधित है जऔौर क्ष॒ मांग से रोतिकासोन सयीत
की प्रमुश्र धसियों बए शास्दीय प्रप्ययम उपस्थित दिया मया है
डे परिष्फे” में रीतिफ्रालीम काम्प-प्रगू लेथा का उच्लेख करत हुए उसका
हत्ताजीस बन सांगौति$ प्रशृत्तियां से पारस्परिश सम्बस्प टिखाया गया है जिसका
अष्पेख पाये परिभ्छेर में हुपा है ।
>साठवें १रिच्छेद में रोविकासीय हस्त और पलगपस्-योजसा बा संयीत से
धम्बशत स्पष्ट किया गया है। संयीत में ओ स्पास सप का है बही बबिता से छस्द
था है । यही नही सम्दासंकारों के समापोय से भी कबिशा में मास्तरिक संगौत
की प्रतिष्ठा होती है अतः इस परिऔरल में इसो बृष्टिश्रेध की स्थापना है
आठवे परिच्ेद में रीविशासीस प्रमुख शाब्य-रुपों बा संगोत से मम्दस्थ
उपस्पस्त है। अध्ययन का सुजिधा के स्िए इस परिआद् को 'क रू भौर “द
मभाणों में गिमक्त किया पया है। 'क' जान मैं रीतिकालीन गोविड़ाब्प और संगीष
के पम्मस्ध का उस्लेख है तबा 'य माय में रीविकासीय प्रवत्थवःम्य जोर शेगोत
के लम्गाज का ध्याश्यापन ।
अध्ययन के परियामस्गदप जो मिप्कर्प उपरग्ध हुए हैं थे स्दे परिक्छल
(सपर्शहार) में जा यद हैं और यही यह प्रडम्प समाप्त हो जाठा है।
विषम के प्रतिपादत में देजन्यज अनुसद बी झा सकत बाली प्रशरता किसी
अरवॉछितीय गृतति का परिषार गहीं उम्र पदिपातल की हार्दिक चप्टा से पविक
अहृत््य ने दिया जादा भाहिए । अस्तु प्रतिपादत की स्वित् प्रखरता मेरी अपनी
शुरईखता है सर हि एली।
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