काव्य में रहस्यवाद | Kavya Me Rahasayvaad

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Kavya Me Rahasayvaad by डॉ. बच्चूलाल अवस्थी - Dr. Bachchulal Avasthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तादना | [२१ (२) दूधवरा भाव वासना का स्वृूछ उदभूत रूप है जसा कि अपर ही स्पष्ट हो चुका है । वह्दी वैयक्तिक सवोवचाविक छोकिक भाव है । चित्तवत्ति मनावंग, मानस ध्यापार आदि से इस! का व्यवहार हांता है । इसे चार प्रकार के अनुभावो-चेय्टाओो द्वारा प्रकट किया जाता है ॥ कायिक बाचिक, सात्विक और भाहाय ये चार प्रकार क बनुभाव होते हैं जा भाव के काम रूप हैं और भाव इनका कारण मूत है। इस अनभावों का अभिनय करके अथवा काव्य मे शब्द विभधित करके यहां लोकिक भाव उपस्थित किया जाता है मोर फिर इस लछोकिक भाव के माध्यम से रसिक्यत अलोक्कि वासनामय माँव व्यक्त होता और रस दया की पहुंचता है। भनुकाय (आश्रय-तायकादि) का भाव इसी दुसरी बाटि का (छौकिक) है । (३१) तीसरा भाव वह है जो अनुकारक नट या कवि>म अनभान गभ्य हाता है चतुविध अभिनय से इस भाव का इसी प्रकार अनुमान होता है जिस प्रकार धुओं देखकर आय बा। ऊपर के दोनों नाव का अथ +हाने बाह्य! है--भवति इति वाव । परन्तु तीसरे भाव की व्युत्पत्ति भाव गति इति भ्राव ” है-अर्थात यह भाव सहृदय दे भाव को भावित करता है तब रस की निष्पत्ति होता है रस निष्पक्ति के परिप्रक्ष मे तीयो भाव) पर समन्वपात्मक दृष्टिपात बरें तो भभिवीत अनुभावा से नदगत नाव तताय अनुमित होता फिर नट की भूमिका रूप आश्रय का लौकिक भाव (द्वितीय) बाता है और तत्वतर रपिक अपन भीतर वात्नासप भाव प्रथम को व्यक्त पाता और रस-दशा मे जा पहुंचता है । ख-अनुभृति--भाव के स्पष्ट हो जाने पर अनुभूति तत्प का श्रम लाता है 1 बनभूति कीम-सा तलब है जो काव्य रचना तथा वाव्यास्थाल का साधन बनता है ? ब्युत्मत्ति वो दष्टि से बह भाव के पश्चात वो घटना (अनु +-भूति ) है । भाव जब मानत-पटल पर रुदित होता है तो भावक द्वारा उसका साज्ाक़ार ही अनभूति है। स्पायी भाव कौ ऐसी ही अनुभूति रस कहो जाती है। यही साक्षान्‍कार अतदपन है । अनुमूति” झ्च्द नया है। प्रदीदि १ सानाशिनय-सम्बाद्धाध भावयन्ति रखानिमान्‌ | यस्‍्माह तप्मादमी भावा विचया नाट्ययोकतमि पा >वाटयचास्त्र ६३४ ६




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