शतध्नी | Shatdhani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
220
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)9० ० बहूछा माप रैंप
सर्रामा हुआ सीसर गया । सार गमर छान डासे । कहीं विमसा
नहीं दिलाई दी | नौकर लड़के स पूछा । उसमे कहां विमन्ना
को धर से गय देर ड्ो गई । मेरा क्रोध चोटी तक पहुँच गया।
इस धर में शोर्द स्यतस्था सही है शोई विसी बी आशा झादेश
नहीं मानता है। मैंने जोरण का बक्ठ देखा । खुला पडा बा।
गहून-वपड़ आाहूर रखे थे । यहुत ही सापरबाह है विमसा
मौर प्रसिसा भी । अजगर भीड़ों ॥1 ऐस सामत छोड दिया
जाये ता भारी भी हो सकती है। जारण ने ब्रामान पर पूरा
दो हजार रूघ हुमा था । सगया है हमार परिवार में हर स्पक्ति
एड ग्रह बे समास है जो मसण सपनी बक्षा में धूमता रहता
हैं | भयोग से मैं और प्रमिसा एक ही का में पड़ पये खीर
हमारा भ्यायी सम्धभ हो गया ।
मुदापे में परिणयर का सयेदबर मं अपने लिए जिदता
प' सुसंगठित आय बमाना शाहता वा बह उतना ही विष्छिन्न
होता जा रहा पा। न शान कज इस इमारत जी दीबारे मोर
श्मे दह जायगे और मैं दव जाऊँगा )
प्रक्स गा चीर्शे ठिकाने से रखगर मैंने दबरल सगा दिया ।
गादी बान में रुवल आपा मेंदा रद गया था। आधेई पर बहुत
प्राय आ रहा था 1 समय का इसना जान होत हुए भी वह अमी
हा क्या सदी आया बुछ दर मौर प्रतीसा की ] उैठर से सया।
यहाँ प्रसिया एक पर्षी पढ़ एड थी । झेर माग बर दी |
अरड़िण ।
“यून में पहने गा धोरज महीं है । जिसने, दिसे, गया
मिया है ? नुम्दीं शहर दो १ *
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