संत साहित्य | Sant Sahitya

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( हे. खुली छाँखों से इस विश्व की 'ओोर कॉकना; मुरली. के मोह स्वर पर अल्दड़ स्गशावक का स्त्यु की गोद में हँसते-हँसते छलाँग मार जाना, दीपक की लो पर शलमों .का श्रीतिपूरवक प्राण-विसजन--ये सब उसी निरवगुण्ठन-प्रक्रिया के कोमल तंतु हैं। टद्मारा यह लघु जीवन झपने अनन्त पथ पर चलकर निरवरुण्ठन की प्रक्रिया में ही लगा रहता हे । सब कुछ खोलना ही है । प्रत्येक पल, प्रत्येक पदार्थ में चिक हटाने की ही क्रिया हो रही हे। हम सोते हैं छोर हमारी मुंदी श्राँखों के भीतर भी एक संसार स्वप्नों के सागर पर तिर उठाता है; हम जागते हें और इस खुले व्यक्त रूप के भीतर से भी कोइ हमारा “अपना” हमें अपने में सिलाने के लिये बुला रहा है--शर यह दृश्य-जगृत्‌ू उसका एक संकेत है-- एक इशारा है, एक 'मौन निमन्त्रण? हे ।.यदि हम केवल शरीर ही शरीर होते तब तो कुछ बात ही न थी । हमारी इस बनने-, मिटनेवाली काया के भीतर जो मर हंस कछुरेल कर रहा दे-- वही हमें शान्त नहीं वैठने देता--वही हमें यहाँ के ललचीले. वाजार में विरमने नहीं देता । शरीर तो सुख-दुःख के थपेड़ों में भी इसी “हंस” का शिकार बना हुआ है । वह इस 'झमर ज्योति का वन्दी बनकर 'झपने भीतर को भ्रूख-प्यास को संठ्प्ति के लिये गे बढ़ता ही जाता है । “हंस” परमहंस से मिले बिना रुकेगा नहीं, रुक नहीं सकता । संसार की--नहीं-नहीं, स्वगे की भी कोई सम्पदा, कोई विभ्ूति; कोई झाकषण इस छनियारे पंछी को लभा नहीं सकती, बाँघ नहीं सकती, विरमा नहीं सकती । तो यह पंछी हमें चैन नहीं लेने देगा ? यह हमें चुपचाप वैठने नहीं देगा ? खोजो और फिर खोजो, खोजते रहो थर खोजते-




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