आलोचना प्रकृति और परिवेश | Alochana Prakrati Aur Parivesh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Alochana Prakrati Aur Parivesh by तारकनाथ बाली -Taraknath Bali

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about तारकनाथ बाली -Taraknath Bali

Add Infomation AboutTaraknath Bali

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पर्प्रिधय / १५ जहाँ तब तान वा सवात है 'सम्यव” का अथ समयन म विशेष बठिनाई नहीं होती । जयोवि व्यावरण कोष आदि के आधार पर शाट वा सम्यक नाने प्राप्त किया जा सकता है। कविन्कम व अन्तगत सम्यव वा जय बहुत विस्तृत हो जाता है वयाकि यहाँ अमिषा हो नही, ललणा और व्यजना वा प्रयाग भी होता है । इसलिए कवि कम की दृष्टि से सम्यक चान पुणन वस्तु परव नहीं है वह ब्यक्तिपरक भी है। व्यक्तिपरक तोन वाया अथ यह है कि बवि वी भावनां और शव्ित वे स्पश से शज्ट अथ वा साक्षात सबत ही नहीं कराता, अथ को घ्वनित भी करता है। यहाँ हम शा के दूसरे आयाम सम्यव प्रयाग पर आ जात हैं। सम्यक प्रयाग का समयन के लिए एव आर बवि की शक्ति के धरातल वा स्वीकार करना आवेश्यव है और दूसरी आर पाठक थी प्रत्तिक्विया पर ध्यान टेना भी ज़रूरी है $ वुछ ता प्रयाग के शास्त्रीय निमम हैं। लक्नि कवि और पाठक वो सभाआ की मर्यादा की स्वीड्ूति से सम्यक प्रयाग वे अथ को समयन मे कुछ कठिनाई हा सकती है । यह स्पष्ट है वि बाई भी लखक यह दावा नहीं वर सकता कि उसका दायित्व केवल शब्ट वे प्रति है। सच तो यह है वि लेखक वा दायित्व शब्द और अथ दाना के प्रति है, और तुल्य रूप से है। जा दोना मे से किसी एश को प्रधान मानता है वह इस भ्रम वा शिकार है वि शद और अथ दा मत्ताएं हैं । भामह ने शद और अथ बे साहित्य को ही कान्य माना है। काब्य मं शब्ठ और अथ दोना सहित रुप मं, तुल्य रूप म आत हैं| इसलिए भागह वा काय्य लक्षण एकमात्र आदश और प्राह्म वाब्य लक्षण है। पड्ितिराज न जा शा” और अथ दाना की स्वीकृति वा सण्डन किया है वह सगत नहीं है। इस जसगति का कारण यह है कि वे शद और अथ को तात्तविक रूप से भिन्न मत्ताए मानवर चलते हैं। यह स्थिति तक-सम्मत नहीं है। उनके तर्कों वा आधार भो शद्दा का प्रयाग है, शब्दा का सम्यक प्रयाग नहीं। इसविएं सामाय ख्यवित की सामास उक्तिया क आधार पर उहान अपने विशिष्ट मत की प्रतिष्ठा का प्रयास क्या है । सामाय शद्द प्रयोग व आधार पर भी तकशास्त्र का एक रूप आधारित है। उसवी मूल असगति भी यही है वि वह अपना दायित्व कवल शब्द क॑ प्रति मानता है । जब क्विया न यह वहा कि उनका दायित्व शब्द के प्रति हे ता वुछ कविया ने जो वाव्य व बार म रिप्पणिया लिखी ह उहे और तथाकथित आताचका के लेखा का पतन से यह प्रत्तीत होता है कि व भी अपना दायित्व कवन शब्द के प्रति अथ निरपंल शट के प्रति मानत हैं । शब्दों के प्रयोग मं असावधानी एक एसा दोप है जो आज के हिन्दी के लखा म व्यापक रूप से पाया जाता है सुदर, श्रेप्प मददनशात्र उल्दृष्ट




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now