श्री वर्षप्रबोध | Shri Varsh Prabodh

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Shri Varsh Prabodh by नारायणदास - Narayandas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- श्री ,,... महाशय ! पाठकगणोसे मंद प्रसिदकर्तोकी प्रार्थना, विदजजन ! यह ग्रंथ (भुप्त था सो) अति कठिनतासे मेरेको प्राप्त हुआ है, ओर सर्वेप्योगी है; केवक द्विजवरही इसका उपयोग करेंगे सो नहों किंठ मरृष्यमात्रकों छामकारी है इसके बाँचनेस बर्षका शभाशभ समझेंगे. - दिनवर फल कहके सिह कहलावेंगे, और व्यापारी सस्ती मैगी वस्तओंका फठ समझके राम उठांदेंगे, - अथम मेने अधेप्रकाश, नामकी एक छोटीसी एस्तक छापी थी उसमें भी ऐसाही विषय * किंचित २ लिया था सो पुस्तकें बहुत बिकी, जबसे मेरी इच्छा यही थी कि इस विपयका कोई बडा ग्रंथ मिले तो छापूं सो नारायणकृपासे इच्छानुसार प्राप्ति होगया. ग्रेथ पाके मनमें विचार किया कि यह तो संस्कषतमें है इस्पेंभी जेनीमापा मिश्रित, और अनेक शब्द कठिन, और समझमें न आंव ऐसा है तो इसकी ओका हिंदीभापामें होजानी चादिये, क्योंकि यह अठम्य ग्रंथ सर्वोपयोगी है, सो बिना हिंदी थैकाके श्र्थ साधारणमनु ग्योंके उपयोगमें नाएँ आके केवल पंडितवरोंके ही कामका होगा. ऐसे विचार ९ विनमपत्र (साथही ग्रंथ ) मेरेपँँ परमकृपालु श्रीयत पंडितजी श्रीज्वाठाप्त सादजी महाराजकी सेवामें मुरादाबाद भेजा तो. उन रृपासागरने मेरी प्रायेनाकी पत्रद्धारा स्वीकार कर इस ग्रंथकी टौका अति श्रमसें सरझ हिंदी भाषामें बनाय मेरेपास भेजदी !. - अब थ्राहकर्जन या पाठकंगणोंसे प्रार्थना है कि आपरोग अवश्य आश्रय देके मेरा भ्रम सफल करेंगे ऐसी आशा है-- आपका; किसनछाल श्रीधर,. पुस्तक मिलनेका ठिकाना: पंडित श्रीधर शिवंलार्लजी . - ज्ञानसागर छापखाना _ मुंबई, तर




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