भक्ति का मार्ग | Bhakti Ka Marg
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
86
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ श४ )
' / विशेश सूुचना--इस सन्त्र में यद यतलाया दे कि ईश्वर
अश्ञान-झूप अन्धन्तार से परे है, चर अचर का शात्मा तथ्य
झशानन्द संघरूप है, जैसे सुपय प्रकाश प्रशु को मझुष्य शान
अक्तु से दी दे सकता है, और कोई साधन नहीं दे ।
ओ उदुत्यं जातबेद्स देवं वहन्ति केतवः
हशे विश्वाय सूच्येस् ॥ ९२ ॥
यज्ञु० झण० हे३ मनन र१
अथ--जिस प्रकाश स्वरूप ईश्वर से वेद प्रफाशिद
हुए उस परमेश्वर के आत्मा की भाप्ति के ।छए इम
उपासना करते हैं, “उद्दहन्ति केतववः! जिस को झतेया
तथा सष्टि के नियम दृष्ठाम्त-रूप होकर बतरा रहे हूँ ॥
' पिशेष इस मन्त्र का माच यध्द है कि वेद और सारषह
ऐेशथर्यर्य पशु से दी मगठ हुआ हैं. रंद्टि के नियम तथा चेढ
चआारे सतछार का परसम्यदर का सारे दखलात द्दां
ओं चित्र देवानासुद्गादंनीक चक्षुमिक्षस्या
चरुणास्थाश्षेः झा प्राद्यावा प्थिवी अन्तारेक्ष ८
'सूथ्य आत्मा जगठस्तस्थुषश्व स्वाहा ॥ ३0
यज्ञु० आऋ० १३ मन्त्र ४६
अथ--जड़े चेतद जगव्् का आत्मा और चरु
अचर जगत् दा प्रशाशक जो स्ये हैं; आप उस के
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