कल्याण [वर्ष 68] [1994] | Kalyan [Year 68] [1994]

Kalyan [Year 68] [1994] by विभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अड् 3 श्रीरामानुस्मृति + चर हहहडकहशह कलह हककफकनड% कडल् हु हक डक है काच का कड़ हम कह ऊ फू कर कफाड़ है हज कक क कह हक कर कड़ी हक हा कह हक डक हक़ हक हक हा ड़ रू काका ह हि जाई का कक श्रीरामानुस्मृति श्रीबहोवाच सन्दे राम जगद्वन्य सुन्दरास्य शुचिस्मितम्‌1 क्दर्पकोटिलावण्य॑. कामितार्थप्रदायकम्‌ ॥ भास्वत्किरीटकटककटिसुनोपशोभितम्‌ । विशाछलोचर्न .. ्राजत्तरुणारुणकुण्डलम्‌ ॥ नीलजीमूतसकाश नीलालक्बूृताननप्‌ । ज्ञानमुद्रालसददक्षयाहू ज्ञानमय विभुम्‌ ॥ वामजानुपरिन्यस्तवामाम्युजकरे हरिम। सीरासने समासीन विद्युत्पुझनिभाम्यरम्‌ ॥। कोटिसूर्यप्रतीकाशा .. कोमलावयवोस्ज्यलम्‌। जानकीलक्मणाध्या च वामदक्षिणशोभितम्‌ ॥। हनुमद्रविपुत्रादिकपिमुस्थैर्निपेवितम्‌ । दिव्यरलसमायुक्तसिहासनगर्त च्रभुम्‌ ॥ च्रत्यह प्रातरुत्याय ध्यातैव राघवं हृदि। एभि पोडदाभिनामिपद स्तुत्वा नमेद्धरिम्‌ ॥ नमो रामाय शुद्धाय सुद्धाय परमात्मने। विशुद्धतानदेहाय रघुनाथाय ते नम ॥ नमो रावणहन्रे ते नमो वालिविनाशिने । नमो सैकुण्ठनाथाय नमो विष्णुस्वरूपिणे ॥ नमो यज्स्वरूपाय यज्ञभोवत्रे नमोश्स्तु ते । योगिध्येयाय. योगाय. परमानन्द्रूपिणे ॥। दाद्भरप्रियमित्राय जानक्या. पतये नम । य इद श्रातस्त्याय भक्तिश्रद्धासमन्वित ॥ चोडरैतानि नामानि रामचन्द्रस्य नित्य । पठेद्िदान्‌ स्मरेन्नाम स एवं स्याद्यूत्तम ॥ श्रीरामभक्तिरतुला भवत्येव हि. सर्वदा। जगत्पूज्य सुख जीवेदू रामभद्रप्रसादत ॥ मसरपी समनुप्राप्ते श्रीराम सीतया सह । हदि संदृश्यते तस्य साक्षात्‌ सौमित्रिणा सह ॥ नित्य चापररात्रषु रामस्येमा समाहित । सुच्यतेश्तुस्पृति जप्त्वा मृत्युदारिद्रयपाततकै ॥। ब्रह्माजी कहते हैं-- जो जगद्दन्ध सुन्दरमुख पवित्र मन्द मुस्कानयुक्त कराड़ों कामदेवेंकि समान सुन्दर अभिलपित पदार्थकों प्रदान करनेवाले दिव्य मुकुट कटक बाजूबद कटिसूतर करधनी स सुशोधित और विशाल नन्रयुक्त है तथा जो लाल तपे हुए स्वर्णकुण्डलसे सुशोभित नीले बादरके समान इयामवर्ण सघन नीले केशॉंसे आवृत मुखवाले दाहिने हाथमें ज्ञानमुद्रा धारण किये हुए तथा विशुद्ध विज्ञानमय एव सर्वसमर्थ हैं और बायें घुटनेपर बायें कइ्कमलको स्थापित कर वीरासनसे वैठे हुए हैं जिनके वस्त्र सघन विद्युत-समूहके समान पीतवर्ण--पीतप्रकाशयुक्त हैं जो करोड़ों सूर्यके समान आभावाले हैं और जिनके अन्भ अत्यन्त कोमल तथा निर्मल हैं जिनके दाहिनी ओर लक्ष्मणजी तथा बायीं ओर भगवती सीता विर्जित हैं जो चानरणज सुप्रीव और हनुमान्‌ आदि श्रेष्ठ वानरोंसे सुशोभित हैं तथा दिव्य रल्ॉसे मण्डित सिहासनपर विराजमान हैं ऐसे विष्पुस्वरूप भगवान्‌ श्रीयमकी मैं वन्दना करता हूँ । इस प्रकार प्रात काल उठकर भगवान्‌ श्रीरामका हदयमें ध्यानकर इन घोडदा नामसि विष्णुरूप भगवान्‌ श्रीयमकी स्तुति करके नमस्कार करना चाहिये-- १ शुद्धबुद्ध २ परमात्मस्वस्प ३ भगवान्‌ श्रीरामकों मेरा नमम्कार है। ४ विशुद्धशानवित्रह ५0 रघुनाथ आपको नमस्कार है। ६ रावणका सहार करनेवाले तथा ७ खाछिको घिदीर्ण करनेवाले आपको मेण नमस्कार है। ८ बैकुण्ठनाथ और ९ विष्णुस्वरूप श्रीरामको नमस्कार है। १० आप यज्स्वरूप और ११ एकमात्र समस्त यज्ञॉंके भोक्ता हैं आपको नमम्कार है। १२५ योगस्वरूप ९३ यौगियोंके हारा ध्येय १४ परमानन्दस्वरूप आपको मेरा नमस्कार है। १५ भगवान्‌ झाकरके परमप्रिय मित्र और १६ भगवती जानकीके पति जानकीवल्लभ आपको प्रणाम है। जो विद्वान्‌ प्रतिदिन प्रात काल शय्यासे उठकर श्रद्धा-भक्तिके साथ भगवान्‌ श्रीरामके इन पांडश नामोंका प्रतिदिन पाठ करता है और ध्यानसे स्मरण करता है बह साक्षात्‌ भगवान्‌ श्रीामका ही स्वरूप बन जाता है। उसके हृदयमें भगवान्‌ श्रीरामका अतुलनीय भक्ति सदा निवास करती है। भगवान्‌ श्रीरामकी कृपासे घह समूचे ससारमें आदरणीय बनकर सुखपूर्वक बहुत समयतक जीता है और जीवनके अन्तिम समय प्राप्त हेोनेपर सीता और लक्ष्मणके साथ साक्षात्‌ भगवान्‌ श्रीराम उसके हृदयर्मे प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं। जो व्यक्ति रात्रिक अन्तिम प्रहर--न्नाहमुदूर्तमें प्रतिदिन सावधान होकर भगवान्‌ श्रीरामकी इस अनुस्मृतिका जप करता है वह अकाल मृत्यु दु ख दाख्यि तथा सभी पात्क-उपपातकास मुक्त हो जाता है। क




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