हंसनाद | Hansanad

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Hansanad  by चन्द्रदत्त शास्त्री - Chandradatt Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इसनाद ७ (5, फिर अंग्रेजीवा्ले! को यह चतलादेतहैं क्रि-- पधाछा8 18 10 एघणाप्रात 0 (०0. देयर इज़् नो वेकुअम वट गोढ । * अथात्‌ कोई खान अब से शून्य नहीं है। पूर्वोक्त उ्दूपद हिन्दी अक्षरों में लिखेजातहें । १ यारको मेंने जावजा देखा, कहीं बन्दा कहीं ख़ोदा देखा ३, सूरते घुलपे खिलाखिला के हंसा, भछ्ठे वुल्बु छूमें चह चहा देखा ३, कहीं है वादशाह तख्तनशीन, कहीं कांता किये गदा देखा ४. कहीं आवबिद बना कहीं जाहिंद, कीं रिन्‍्दों का पेशवा देखा 4, करके दावा कहीं अनलइक का, वर सरदार वह खिंचा देखा ६. देखता आप है सुनहे आप , नहीं छुछ उसके भातसिवा देखा ७, घाल्कि यह वोलना तकल्छफहै, हमने उसको सुनाहै या देखा वह कौनसा है शुरू कि भल्त जिसमें वू न हो, बह दिल हे कानसा कि भरा जिसमें तू नहों। जोकुछ कि थी तमन्ना वह हासिर हुई मंगर अव द्लिकों आरज़्‌ है कि फिर आरज़्‌ नहो। अरवी वालों को यह पढ़ादेतीहैं किं--- कुछो शेयनकृदीरन अथोत्‌ वह ब्रह्म सम्पूर्ण विश्व के पदार्थों में अपनी सत्ता से व्यापरदाहै औ से का अनुशासिता अर्थात्‌ आज्ञा करनेवाका ओ सबब को शिक्षक है |




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