शृंगारहारावली | Srangarharavali

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Srangarharavali by श्रीहर्ष - Shriharsh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रधान संपादकीय वक्तव्य १३ राजस्थान एवं गुजरात, मालवा आदि प्रदेशोंम प्राचीन हस्तलिखित श्रन्थोंके विखरे हुए एवं जीणेशीण दशामे जो संत्रह प्राप्त होते हैं उनमें संस्क्ृत, प्राकृत, अपस्रद् एवं प्राचीन राजस्थानी-गुजराती भापाम रचित छोटी वडी ऐसी सेंकडों ही खादित्यिक करृतियां उपलब्ध होती हैं जो अभी तक प्रायः अज्ञात और अप्रखिद्ध हैं | विद्यानॉका लक्ष्य प्रायः अभीतक उन्हीं छुप्रसिद्ध ओर खुज्ात अन्थोंके अन्वेषण एवं संशोधनकी वरफ रहा है जो यत्रतत्र यथेष्ट परिमाणमे उपलब्ध होते है। भ्रन्थोंके संपादन और प्रकाशन के विपयमें भी प्रायः यही प्रथा चली आ रही है। खुप्सिद ओर खुज्ात अन्थोंके खिवा छोटी छोटी एवं प्रकीण रचनाओंके विपयमें चिह्मानोंका विशेष लरूप्ष्य नहीं जाता है ओर इसलिये अभी तक ऐसी र्वनाओंके संपादन-प्रकाशनका मुख्य प्रयत्न प्रायः नहींसा हुआ है | हमारे प्राचीन इतिहास एवं सांस्कृतिक सामभीकी दश्खि इन फुटकर रचनाओंमें जो ज्ञातव्य छिपे पढे हैं उनकी तरफ सा बिल्कुल नहीं गया हें-ऐसा कहा जाय तो कोई अत्युक्तिकी वात नहीं होगी । राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्द्रिका काये प्रारंभ करते समय, हमारा मुख्य लक्ष्य इस प्रकारके परकीर्ण साहित्यका अन्बेपण, संत्रह, सेरक्षण, स्ोघन एवं प्रकाशन आदि करनेका रहा है और तद्लुसार, राजस्थान पुरातन अन्ध- माला दारा ऐसी अनेकानेक साहित्यिक रचनाओंको, खुयोग्य विद्वानों द्वारा शोधित-लंपादित कराकर प्रकाशरमं रखनेका आयोजन हमने किया है । संस्कृत और प्राकृत भापाम रचित मुक्तक-प्रकोर्णक पद्योके फुटडकर संग्रहोंके ताम पद्यावल्ि, मुक्तावलि, हारावलि, भणिमाछा, रत्नमालछा, पुष्पमालछा आदि रूपमें प्रसिद्ध है। कुछ कृतियां पद्योकी संख्याके अनुसार भी प्रसिद्ध हैं-- जैसे पांच पांच पर्योका संत्रद्द पंचक, आठ आठ पयाका संगद्ट अष्टक, १० पद्योंका संग्रह दशक, इस तरह पोडशक १६ पर्योका, २० पद्मयात्मक रचना विंशविका, २४ पद्यात्मक कृति चतुर्विशतिका, २५ पद्योक्ी पंचविशतिका, ३० की चजचिंशिका, ३२ की द्वाचिशिका, «० पद्चोंके संग्रहवाली रचना पंचाशिका या पंचाशक, ७० पद्योंकी समूद्रात्मक रचना सप्ततिका एवं सौ पच्चोके संग्रह शतक आदि नामसे उछिखित किये जाते हैं । राजस्थान पुरातन अन्थमालऊाके १५ चें पुष्पके रूपमे पाठकोंके हाथम जो अन्थ उपस्थित है. घह शांगारहारावलि भी इसी प्रकारकी एक सुक्तक-पद्योंकी संप्रदरूप संस्कत रचना है। संस्क्तके भिन्न भिन्न छन्दोंमे, रचे हुए १०१ पद्चोंकि




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