गोम्मटसार | Gommatsar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
320
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दर
४ सप्तमंगीतरंगिणी भा टी, यह न्यायका अपूर्व अन्थ है इसमें अंथकतों श्रीविम
लदासजीने स्थादस्ति, खान्ासि आदि सप्तमंगी नयका विवेचन नव्यन्यायकी रीतिसे किया
है। स्वाद्वादमत कया है यह जाननेकेलिये यह गंथ अवश्य पढना चाहिये न्यों. १ २ु.
५ चृहदव्यसंग्रह संस्कू, भा टी. श्रीनेमिचन्द्रखामीकृत मूछ और श्रीत्रह्मदेवजीकृत
संस्क्ृतटीका तथा उसपर उत्तम बनाई गई भाषादीका सहित है इसमें छह द्रृव्योंका खरूप
अतिस्पष्टरीतिसे दिखाया गया है। न्यों. २ रु.
६ द्रव्यानुयोगतर्कणा इस गंथमें शाखकार श्रीमद्भोजसागरजीने सुगमतासे मन्दबु-
द्विजीवोंको द्वव्यज्ञान होनेकेलियि (अथ, “ गुणप्येयवद्रव्यम् ” इस महाशासतत्र तत्त्वार्थयृत्र-
के अनुकूल द्रव्य--गुण तथा अन्य पदार्थोका भी विशेष वर्णन किया है ओर प्रसंगवश
* स्वादस्ति ” आदि सप्तमंगोंका ओर दिगंबराचार्यवर्य श्रीदेवलेनलामीविरचित नयचक्रके
आधारसे नय, उपनय तथा मूलनयोंका भी विस्तारसे वणेन किया है। न्यों. २ रु.
७ सभाष्यतत्वाथोधिगमसूत्रस् इसका दूसरा नाम तत्त्वाथीधिगम मोक्षशास्त्र भी है
जेनियोंका यह परममान्य और मुख्य अन्थ है इसमें जैनधरमके संपूर्णसिद्धान्त आचायेव्य
श्रीउमाखाति ( मी ) जीने बड़े छाघवसे संग्रह किये है | ऐसा कोई भी जैनसिद्धान्त नही
है जो इसके सूत्रोंम गरमित न हो । सिद्धान्तसागरको एक अत्यन्त छोटेसे ,तत्त्वार्थरूपी
घटमें भरदेना यह काये अनुपमसामथ्येवाले इसके रचयिताका ही था। तत्त्वार्थके छोटे
२ सून्नोंके अथेगाभीयेकी देखकर विद्वानोंको विस्तित होना पड़ता है । न्यों. २ रु.
८ स्याह्मदमंजरी संस्क्ृ- भा. टी. इसमें छहों मतोंका विवेचनकरके टीका करता
विह्वह्ये श्रीमह्िषिणसूरीजीने स्थाह्मादको पूर्णरूपसे सिद्ध किया है । न्यों. ४ रु.
९ गोम्मटसार ( करमेकाण्ड ) संस्क्ृतछाया और संक्षिप्त भाषाटीका सहित यह महान
ग्न्थ भीनेमिचन्द्राचायेसिद्धान्तचक्रवर्तीका बनाया हुआ है, इसमें जैनतत्त्वोंका खरूप कहते
हुए जीव तथा कमेका खरूप इतना विस्तारसे है कि वचनद्वारा प्रशंसा नही होसकती
देखनेसे ही माछठ्म होसकता है, ओर जो कुछ संसारका झगड़ा है वह इन्ही दोनों
( जीव-कमे ) के संबन्धसे है सो इनदोनोंका खरूप दिखानेकेलिये अपूर्व सूर्य है। न्यों-
२ रु.। इसका दूसरा पूर्वभाग ( जीवकाण्ड ) भी शीघ्र ही मुद्रित होनेवाला है ॥
१० अवचनसार--श्रीअस्ततचन्द्रसूरिकृत तत्त्वप्रदीषिका से. टी., “ जोकि यूनिव-
सिंटीके कोर्समें दाखिक है ” तथा श्रीजयसेनाचार्यक्नत तात्पयेबृत्ति से. टी. और वालव॒वो-
घिनी भाषाटीका इन तीन टीकाओं सहित छपरहा है दिवालीके रुगभग तयार हो-
जाइगा, इसके मूलकतों श्रीकुन्दकुन्दाचाय है । यह अध्यात्मीक अन्ध है ॥
अन्थोंके मिलनेका पता-+-
. शा. रेवाशंकर जगजीवन जोंहरी
ऑनरैरी थे |
अनिररी व्यवस्थापक श्रीपरमश्नुतप्रभावकर्मंडल जोंहरीबाजार खारा कुवा बम्बई ने, २1 '
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