उपनयन पद्धति | Upnayan Paddatti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(०५८ ) उपनंयनपद्धति: । वत्ध पहनाता है॥ अम्पेनेद्राय इृहस्पति इस मंत्रसे [ मंत्राथ जेसे- ] देवताओंका ग्रुरु बृहस्पति जिस प्रकार यह बद्ध अमृत अर्थात्‌ इत छिद्र दग्घता जीणे- तादि दोप रहित यंह वस्ध॒ पहनाता सया तिस प्रकार आयु चिरंकाल जीवन ओर बल सामथ्य तेज कांतिके लिये दम तुमारेकी पहनाते हैं ॥ वद्ध पहनेके अनंतर बालक ट्विवार आचमनकरे प्रमाण (याज्ञ स्वृ॒ति अध्या० १ शोक ६६ ) “स्नात्वा पीत्वा क्षुते स॒पते भुफत्वास्थ्योपर्ठपणे । आचांतःपुनराचामेद्रासो विप- रिधाय च! अथीत्‌ स्नान पान॑ क्षुत ( छींक ) शयन भोजन वबाजारसे आकर भाचांतकृत पुरुष फिर आच- मं करे भावाथे इनमें दोबार आचमन करना चाहिये॥ अनेंतर माणवक प्रवर सहश तिगुण मुंजकी मेखंलाकों अंधि दे आचाये बालकके बंधन करे। इयंदुरुक्तं इस मेत्र को बालक पढ़े ॥ विवि * इयदुरुक परिवाधमाना वर्ण पवि: पुनतीमआगात्‌ । याणापानाभ्या बल- मादधानास्वसादेवीसुभगामेखलेय४॥ ॥१ ॥ » युवासुवासाः परिवीतःआगगा- त्‌ सउश्रेयान्‌ भवति जायमान/तंघी- रासः कवय उन्नय॑तिस्वाध्यो मनसांदे-




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