ऋग्वेद संहिता भाषा भाष्य खंड 1 | Rigaveda Sanhita Bhasha Bhasay Khand 1

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Rigaveda Sanhita Bhasha Bhasay Khand 1 by जयदेव जी शर्मा - Jaidev Ji Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८२३.) हा ५. | च ५ 2 १२, पुराण ओर ऋग्वेद की शाखाएँ ३ ७ ० ८ ०० ७ हे, पुराणों ने बेद के सम्बन्ध में बहुत से अनथंकारी विचारों को फेलाया है । इसलिये उनपर भी विचार करना आवश्यक है । (१ ) पुराणों का यह सन्तव्य हैं कि भ्रत्येक चतुगुंगी में द्वापर के अन्त में एक वेदव्यास उत्पन्न होता है। वह वेदों का व्यास करता है । अभी तक २८ चतुर्युगी गुज॒री हैं और उनमें २८ व्यास हो चुके हैं। अन्तिम वेदब्यास कृष्ण द्वपायन हैं । विष्णुपुराण में उन २८ व्या्सों के नाम भी भी दिये हैं । इस मत को विष्णुपुराण ने इस प्रकार लिखा है-- . पराशर उबाच-- वेददुमस्थ मेन्रेय शाखासेदाः सहसख्तशः शक्तों विस्तराद्‌ वरुं संक्षेपेण ख्थणुप्व तमर्‌ ॥ दवापरे द्वापरे विष्णुव्यासरूपी महासुनिः । वेदमेक तु बहुधा कुस्ते ज़गतों हितः दीय॑ तेजों बल चाल्प॑ मनुप्याणामवेक्ष्य- च हिताय सवसूतानां वेदभेदान्‌ करोति सः. ल्‍प हा है हु हे अथांव्‌, पराशर कहते हैं--हे मेत्रेय ! वेद वृक्ष के हज़ारों शाखा- मेद हैं, उनको विस्तार से नहीं कहं। जा सकता। संक्षेप॑ से. सुनो । प्रति- द्वापर व्यासरूप महामुनि एक-वेद को बहुत भेद-चाला करता है । मनुष्यों के चीये, तेज और वर अल्य देखकर वह सब प्राणियों के हित के लिये वेदों का भेद करता हे डह् हट ठ 5 इसका तात्यय यह हो गया कि प्रति द्वापर व्यास ही वेद के शाखा भेद किया करता है। फिर प्रश्न यह उठता हैं उन सिन्न २ शाखाओं का समास कोन करता है। अथांत्‌ सब शांखाओं को एक कौन करता है । चतुयुग के आंद से एक समास-करने जाले ऋषि की भी कल्पना करनी




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