ऋग्वेद संहिता भाषा भाष्य खंड 1 | Rigaveda Sanhita Bhasha Bhasay Khand 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
853
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८२३.)
हा ५. | च ५ 2
१२, पुराण ओर ऋग्वेद की शाखाएँ
३ ७ ० ८ ०० ७ हे,
पुराणों ने बेद के सम्बन्ध में बहुत से अनथंकारी विचारों को फेलाया
है । इसलिये उनपर भी विचार करना आवश्यक है ।
(१ ) पुराणों का यह सन्तव्य हैं कि भ्रत्येक चतुगुंगी में द्वापर के
अन्त में एक वेदव्यास उत्पन्न होता है। वह वेदों का व्यास करता है ।
अभी तक २८ चतुर्युगी गुज॒री हैं और उनमें २८ व्यास हो चुके हैं। अन्तिम
वेदब्यास कृष्ण द्वपायन हैं । विष्णुपुराण में उन २८ व्या्सों के नाम भी
भी दिये हैं । इस मत को विष्णुपुराण ने इस प्रकार लिखा है-- .
पराशर उबाच--
वेददुमस्थ मेन्रेय शाखासेदाः सहसख्तशः
शक्तों विस्तराद् वरुं संक्षेपेण ख्थणुप्व तमर् ॥
दवापरे द्वापरे विष्णुव्यासरूपी महासुनिः ।
वेदमेक तु बहुधा कुस्ते ज़गतों हितः
दीय॑ तेजों बल चाल्प॑ मनुप्याणामवेक्ष्य- च
हिताय सवसूतानां वेदभेदान् करोति सः.
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हा
है हु हे
अथांव्, पराशर कहते हैं--हे मेत्रेय ! वेद वृक्ष के हज़ारों शाखा-
मेद हैं, उनको विस्तार से नहीं कहं। जा सकता। संक्षेप॑ से. सुनो । प्रति-
द्वापर व्यासरूप महामुनि एक-वेद को बहुत भेद-चाला करता है । मनुष्यों
के चीये, तेज और वर अल्य देखकर वह सब प्राणियों के हित के लिये वेदों
का भेद करता हे डह् हट ठ 5
इसका तात्यय यह हो गया कि प्रति द्वापर व्यास ही वेद के शाखा भेद
किया करता है। फिर प्रश्न यह उठता हैं उन सिन्न २ शाखाओं का
समास कोन करता है। अथांत् सब शांखाओं को एक कौन करता है ।
चतुयुग के आंद से एक समास-करने जाले ऋषि की भी कल्पना करनी
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