अथर्ववेद भाष्य | Atharvaved Bhashya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
340
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मू० ६ [५२२] रफ्ानविंश काएडम ॥ ९४ ॥ (झईए ):
( अतिप्ठत्:) ठदरा.है ॥ १ ॥ 18 «0 हि को
सावाब-जिस परमात्मा में. सहस्नों अर्थात् असंण्य भुताओ्ों, असंदयपः |
, नेज्ों भौर असछंठप पैसों का साप्रथ्प है:भ्र्थात् जो अपनो. सर्वव्यपकता-से सब
ईन्द्रियों.का काम करके झनेक रचना आदि कर्म, करता. है | घह जगदीश्वर ,भूमि
से लेशर सकल ब्रह्माण्ड में चाहिर भीतर व्यापक है, सब मलुए्य. उस सच्चदा» .
मन्द् परमेश्त्रर फी उपासना से आनन्द प्राप्त. कर ॥ १॥ . ,. .. .. ह
यद्द मन्त्र कुछ |मेद से ऋचरवेद में है--१०। &०। १। यछुवेंद ३१। १
और सामबेद पू० ६ । १३। ३। और संमरुत्र पुरुष सूक २२ मन्त्र: यज्ुवेद पाठ
फे अचुसार महर्षि दूयानद छत ऋग्वेदादि, भाष्य भूमिका सृष्टि विद्या .
विषय्य में व्याज्पात है ॥ जा
“ यहाँ पर निल््त लिछित मन्त्र से मिलान करों--ऋऋ० (६० | ४१। हे.
शोर .यज़ुर्वेद १७1 १६॥ श्र
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( विई्वतश्चचुः ) सब ओोर नेन्न धांला+( उत ) और ( विश्वतोमुंस! )
सब और. मुणज.- प्रालां,5(:विश्वतोयाहु: .) सब, ओर ; -सुजाओं। ,वाला...
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और पराक्रम से ( पतत्रै) ) गति शील परमाणु आदि के संर्थः ( धावामेमी:):
य॑ और भूमि[ आदि लेकों.] फो- ( सम) धथापिधि .( जनयन.) उत्पन्न
कर फे (सम् ) यथावबत् ( धमति ) प्राप्त- होता है ॥ .
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यहा पश्नस्थूलपच्चचुदाभुतानि दशाड्युलान्यशानि यरय-तज्ञपत ॥:
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