षट्खंडागम खंड 10 | Shatkhandagam Khand 10
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
550
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रे पैक है, रे« ] वैयणमहाह्िियोरे वेयणणिक्खेयों [७
सा वेयणा एस त्ति अभेएण अज्शवृसियत्यो इवणा | सा दुविहा सब्भावासब्भावद्ववण-
औएण । तत्य पाएण अणुहरंतदव्बभेदेण इच्छिददव्वइवणा सब्मावइवणवेयणा, अण्णा
असब्भावइवर्णवेयणा ।
दब्वेबेयणा दुविह आगम-णोआगमदत्ववेयणामएण । वेयणपाहुडजाणओ अशुवछत्तो
थागमदच्ववेयणा । जाणुगसरीर-मविय-तव्वद्रित्तिमिए्ण णोआगमदव्ववेयणा तिविद्द । तत्व
जाणुगसरीर॑भविय-वहमाण-समुज्ञादभेंदेण तिविह । वेयणाणियोगद्दारस्स अणागमस्स
उवायाणकारणत्गेण.. भविस्सरुवेण सहियो जेग णोआगमभवियदव्ववेयणा ।
तत्बदिरित्तगोआगमदव्बवेयणा. कम्म-णोकस्ममेणण दुविह्द । तत्थ कम्मवेयणा
णाणावरणादिभिएण अइविहा । णोकम्मणेआगमदब्यवेयणा सचित्त-अचित्त-मिस्सयभेणण
तिविहा । तत्यथ सचित्तदव्ववेयणा सिद्धजीवदत्वे । अचित्तदव्ववेयणा पोग्गल-कालागा[स-घम्मा-
घम्मदव्वाणि। मिस्सदव्ववेयणा संसारिजीवदव्बं, कम्म-णोकम्मजीवसमभवायरुस जीवाजीवेदितो
पुधभावद्सणादो ।
“ वह वेद्सा यह है ' इस प्रकार अभेद रूपसे जो अन्य पदार्थ बेदना रूपसे
अध्यचसाय होता है चह उथापनावेदना है। बह सद्भावस्थापना और असद्भावस्थापनाके
भेद्से दो प्रकारकी है। उनमेंसे जो द्वव्यका भेद प्रायः वेदनाके समान है उसमें इच्छिछत
द्रव्य अर्थात् चेद्नाद्वव्यकी स्थापना करना सद्भावस्थापनचेदना दै और उससे मिश्र
असदूभावस्थापनवेदला है ।
द्रब्यवेदना दो प्रकारकी हैं-- आगम-द्वव्यवेदना और नोआगम-द्रव्यचेदना | जो
चेदनाप्राशृतका जानकार है किन्तु उपयोग रहित है वह आगम-द्रव्यवेदना है। नोआगम-
इब्यचेदना शायकशरीर, भव्य और तद्व्यतिरिक्तके भेदसे तीन प्रकारकी दे । उनमेंसे
शायकशरीर यह भावी, वर्तमान और त्यक्तके भेद ले तीन प्रकारका हैं। जो वेद्नाइुयोग-
दारका भज्ञानकार है, किन्तु भविष्यमें उसका उपादान कारण होगा; चह भावी नोआगम-
दब्यवेदना है। तद॒व्यातिरिक्त-नोआगम-द्रव्यवेदना कर्म और नोकर्मके भेदसे दो प्रकारकी
है। उनमेंसे कर्मचेदना शञानावरण आदिके भेद्से आठ प्रकारकी है, तथा नोकमे-तोआगम-
दृत्यवेदना सचिस, अचित्त और मिश्रकेमेद्स तीन प्रकारकी है। उनमेंसे सचित्त दवृव्यवेदना
सिद्ध-जीव-द्रव्य है। अचित्त-द्रव्यवेदना पुदूगल, काछ, आकाश, धर्म और अधर्म द्रव्य
हैं| मिश्र द्वव्यचेदना संसारी जीव-द्व्य है, क्योंकि, कर्म और नोकर्मका जीवके साथ
हुआ सम्बन्ध जीच और अज्ञीवसे भिन्न रुपसे देखा जाता है।
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