मछली - जाल | Machli-jaal

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Machli-jaal by कृष्णचन्द्र - Krishnachandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हुस्न और देवान ११ बातें करती दें । तेरी सब शोखी निकाल दूँगा । ज्ञरा ढ्दर, तो पदले सुक्ते इससे चिंबट लेने दे, क्यों-बे उदलू के पटुठ़े +”” उल्लू के पट्छे ने हॉपते हुए कहा--“'मैं, मैंने कोई अगवा नहीं किया 1?” “ले इसी तरद रददने दो” दजूर ने फेसला सुनाया “जब तक दम खाना वगेरा खायेंगे ।” यह कटकर उन्दोने सु इ फेर लिया झौर बनिये से बातें करने लगे, “में मौज़ा घेरकोट से शा रद हूँ। यद किसान इस खूबसूरत लड़की को श्रगवा कर लाया दें, चार दिन से मारा-मारा इसकी तल्ञाश में घूम रद्दा था । झाज ये दोनों झाशिकनमाशूक दाथ लगे । कोहाले से पार जाने की कोशिश में थे, लेकिन मै इन्हें कब छोड़नेवाल्ना था । में उस रास्ते को सूघ लेता हूँ जहाँ से एक॒बार सुजरिम गुजर गया दी । अब यद बदमाश इकबाल नदी करता, एक तो जुर्म किया उस पर यह सीना- ज़ोरी 1”? बनिया दाथ जोदकर बोला--“इजूर, दम तो दुजूर के जान-माल को दुआये देते दें । श्राप दी की कृपा से इलाके में बिलकुल शान्ति है । चोरी-चकारी, ढकैत्ती का लगभग खात्मा हो गया हैं। ये किसान ल्लोग यड़े बेशमं होते हैं । भ्रब इसकी भ्रोर देखिए । दूसरों की बहु-बैटियों को ताकना न्हाँ की शराफत हैं श्र फिर उन्दें भगा के जाना, राम ! राम ! दजूर ऐसे झुजरिसों को तो पूरी-पूरी सजा सिलनी चाहिए ।”” दजूर ने उस नौजवान लड़की की शोर ताकते हुए कहा--''कानून यद्दी कद्दता दें शाइजी ! दम तो कानून के चन्दे हैं। झगर कोई झरावा करेगा या किसी की बहू-्बेटी पर हाथ ढातेगा तो इम उसे जरूर सुजरिस ठहरायेगे घर उसे सज्ञा दंगे । वद्द सुरगा झापने अभी तक दलाल करवाया है या नहीं । शाइबाज ! शाइजी से चद्द सुर्र लेकर दलाल कर ।”' नौजवान किसान का चेहरा जुमीन से लगता ला रद्दा था । उसके




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