सामवेद संहिता भाषा भाष्य | Saamved Sahita Bhasha Bhashya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
904
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(३५)
दूसरे के उपकारक भी हो जाते हैं | यहाँ इनको व्यवस्था नरराष्ट के
पमान ही समभझनी क्षाद्दिये ।
और भी स्पष्टता के लिये निरत्रकार ने इन देवताओं को तीन विभाग
मर बांट दिया है । इचि का चहन करना देयताओं का आवाहन करना या
टृष्टाविपयक सय काम 'भप्निविषयक समझा जाय | पृथिवी स्थाती देव
गण अश्य, शकुनि आदि निघणदु (श्र० £ स० ३ ) में पढ़ दिये हैं झमि
$ संस्तविक देव इन्द्र, सोम, चरण, परन्प, श्तु है । अथोतव् इन नामे।
पे भी भग्मि को स्तुति को गई है ।
इपी प्रकार मध्यम्धानी देवता निधघण्दु ( १० ४, खे० ७, ९ ) में
पढ़ दिये गय हैं. । उनमें मुख्य इन्द्र या बायु है। सच यज्ष कमे इन्दर
नाम से कह्दे जते दें, इसका काये रस का झनुप्रदाग करना और सृत्र का
बंध करना है । अश्नि सोम, परुण, पूषा, श्रइम्पति, माहमणरपति, पर्व
झुसुस, दिप्णु, चायु आदे इसके सेस्तविफ देव है। तृतीय स्थान के देवता
निधणादु ( १, स० ६) में पढे गपे हैं। रशिमयें से रस रा क्षमा और
घारण करना झादित्प का छाये हू इसके संस्तविक देव चन्द्रमा, वायु
और संदत्पर है । ॥
निरक्कार थारक का यह देवता विभाग केवल भौतिक विज्ञान के
धर्णन में ही लागू होता प्रतीत होता हे | समाज उच्र भें घेदज्ञान को
प्रवृत्त कराने के लिये सारफ की स्पासुपा केवल यही है कि नदेक्नतर:
राष्ट्रमिय” नरराष्ट् के समान ही थेद में देयराष्ट् फी ब्यकस्था सममनी
चाहिये | इस प्रकार उन्हीं देवतामों से यधाम्थान राष्ययबरध, भार
समाण को परण्यब्यणस्था का भी बर्णेण निकल्त आयेगा। श्र झध्यास्म
घणन छे क्षिये दरक का सिद्धांत यही है कि * महाभाग्यादसतानां
एक आत्मा यहुचा स्सूयत । * एक डी महाद् झाष्मा को उसके मद्ाद्
ऐशप के कारण नानारुप से स्तुति को गई है ।
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