सामवेद संहिता भाषा भाष्य | Saamved Sahita Bhasha Bhashya

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Saamved Sahita Bhasha Bhashya by जयदेव शर्मा - Jaydev Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(३५) दूसरे के उपकारक भी हो जाते हैं | यहाँ इनको व्यवस्था नरराष्ट के पमान ही समभझनी क्षाद्दिये । और भी स्पष्टता के लिये निरत्रकार ने इन देवताओं को तीन विभाग मर बांट दिया है । इचि का चहन करना देयताओं का आवाहन करना या टृष्टाविपयक सय काम 'भप्निविषयक समझा जाय | पृथिवी स्थाती देव गण अश्य, शकुनि आदि निघणदु (श्र० £ स० ३ ) में पढ़ दिये हैं झमि $ संस्तविक देव इन्द्र, सोम, चरण, परन्प, श्तु है । अथोतव्‌ इन नामे। पे भी भग्मि को स्तुति को गई है । इपी प्रकार मध्यम्धानी देवता निधघण्दु ( १० ४, खे० ७, ९ ) में पढ़ दिये गय हैं. । उनमें मुख्य इन्द्र या बायु है। सच यज्ष कमे इन्दर नाम से कह्दे जते दें, इसका काये रस का झनुप्रदाग करना और सृत्र का बंध करना है । अश्नि सोम, परुण, पूषा, श्रइम्पति, माहमणरपति, पर्व झुसुस, दिप्णु, चायु आदे इसके सेस्तविफ देव है। तृतीय स्थान के देवता निधणादु ( १, स० ६) में पढे गपे हैं। रशिमयें से रस रा क्षमा और घारण करना झादित्प का छाये हू इसके संस्तविक देव चन्द्रमा, वायु और संदत्पर है । ॥ निरक्कार थारक का यह देवता विभाग केवल भौतिक विज्ञान के धर्णन में ही लागू होता प्रतीत होता हे | समाज उच्र भें घेदज्ञान को प्रवृत्त कराने के लिये सारफ की स्पासुपा केवल यही है कि नदेक्नतर: राष्ट्रमिय” नरराष्ट्‌ के समान ही थेद में देयराष्ट्‌ फी ब्यकस्था सममनी चाहिये | इस प्रकार उन्हीं देवतामों से यधाम्थान राष्ययबरध, भार समाण को परण्यब्यणस्था का भी बर्णेण निकल्त आयेगा। श्र झध्यास्म घणन छे क्षिये दरक का सिद्धांत यही है कि * महाभाग्यादसतानां एक आत्मा यहुचा स्सूयत । * एक डी महाद्‌ झाष्मा को उसके मद्ाद्‌ ऐशप के कारण नानारुप से स्तुति को गई है ।




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