निरुक्तम | Niruktam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्तारवाले भी हैं--देनो का मिश्रण निघण्ठु में उचित नहों। वर्तमान निष्ठु के केवल तीन ही खण्ड हैं जिनका इन चारों से मेल दिखाने का अयास दुर्वाचार्य ने अपनी निरुक्त बृत्ति मे किया है। ऐकपदिक-बाण्ड के 'अनवगत सस्कार' वाल शब्द इस चतुलेक्षणी मे नही आते। अवश्य ही इन्ही रूद्षणों से युक्त अन्‍य निषण्ठु भी रहे होगे! जिनमे लक्षण के अव्यात्ति कौर अनिध्याप्तिदोप नहीं होगे। पुना, 'तान्यदि एवं सपानान्‍्ति (७११५) कितने आचार्य देवताओं के ऐसे नागो वी भी गणना ( अपने निघण्यु मे ) कर जेते है । यह भी सिद्ध ब॒रता है कि निषण्यु कई थे 1 यार ने निदक्त वे' असम से ही निधष्टु वर बहुबचन से प्रयोग बरके सम्भवत इसी तथ्य बी ओर निर्देश किया है। वे शब्दों बे चार भाग करते हैं--नाम, बास्यात, उपसय और निप्रात। वर्तमान निघण्दु में तो बेवछ माप्र और आग्यात ही हैं, कया उपसर्ग और निपातों का सप्रह रखनेवाला भी निधष्दु घा ? बाबाये भगपहत्त ने भी कई प्रमाणो से सिद्ध दिया है हि निधण्दु अनेक थे। निरक्त मे जित प्राचीन आचार्यों ( निरक्तवारों ) का नाम आया है वे राव निघषण्यु बी भी रचना वरमवाल थे। कधवपरिशि्ट बा ए८ याँ परिशिष्ट भी निषष्टु हो है जित्ते य॒ कोत्सव्य हृत मानते हैं। बृहरँवता में घासफ पे नाम के सापन्साथ शाकपूणि कं भी उल्लेश धई बार हुआ है, इससे निश्चय हो डनबा निषष्टु और निरक्त रहा द्रोगा। पूना से उन्होंने धावपूणि के निषषण्यु को प्रवाशित भो बराया है ।) इस प्रदार वे १५०२० निधष्युओं के होने रा अनुमान बरते हैं। डा० छड्पण सरय निघष्दु को एुन्‍ व्यक्ति भी रखना नहीं पानते,ई विन्तु राजवाई ने इसका सप्रमाण ए्इन विया है। हा० स्वोह्ड ते हृस्त- लिपित प्रषो वा बापार छेवर यह सिद्ध बरने की चेष्टा -की है दि निशक्त का पूंपट्‌ब ( १-६ कष्याय ) ओर उत्तरपदर ( ७-१२) दो प्रथ हैं, दोनों बी घेली भी भिन्‍त है अवएव विषष्टु में भी पहले दंदव-क्ाण्ड नहीं रहा १ प्रो+ राजवाई--) 043 #ैमम्यै[01 3-४1] ३, ४दिक-जाप्णय क्य इलिहास, माय १, राण्ड २३ ३. ६० राम दिन्द विदेदी, ५दिर रातत्य, ए० ११७। हे, * 21. ४४९७ ४ [ुबण७ 1ए 1०६ ४ट.|३०उ००१०४ 'ई & ह॥., € 4 6188० 40७, 1४६ ६१० ६८ ५१६ ७६ ए८ ७.०च्वे चीज एुं &» क्रभिप्ट ६० धशाडएंपप एड करत गृष् रई कलला [रुप राजय घ४ । कह, छह ( 14[32-2. ६ हेछ )




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