संस्कृतसोपानम भाग 1 | Sanskrit Sopanam Bhag I
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१) प्रथन्षः पाठः
पथिक-व्यात्र-कथा
एकः हउ्ध/ व्याप्रः स्नातः कुशहस्तः सरस्तीरे बरते,
«मे! भेश पान्था), इंद सुबर्णकड्टणं गल्यताम |! तताः
लेभाकृप्टेन केनचित् पान्येन आलेचितसू , “भाग्येन एतत्
अपि संभवति । किंतु अस्मिन अर्थसन्देहे प्रहत्तिः न विधि: ।
तत् निरूपयामि तावतू ।” प्रकाश बते, “क तत् ककरस् श!
व्याप्र; हस्त प्रसाय दर्शयति । पान्थ; अवदतू, “कर्थ त्वाय
विश्वास: ९” व्याप्र। उवाच, “इदानोम् अपि अहई स्नान-
गीलः दाता ६८४ गलितनखदन्त) कर्थ न विश्वासभूपि: !
मम च एतावान् छाभविरद। येन स्वहस्तगतम् अपि स्वण-
कह यस्मे कस्मैचित् दातुम् इच्छामि। किंतु व्याप्न। हि
प्रातुष॑खादति इति छाकापवादः दुनिवार/। तत् अन्र
सरसि स्नात्वा सुबर्णकड्ढएं ग्रहण ।” इति बचनेन सल्ात-
विश्वास) यावत् असै सरः स्नातु प्रविशति, तावत् महापक्ले
निमग्नः पलायितुम् अक्षमः। त॑ दृष्ठा व्याप्ः बदति, “हा
हा पान्थ, महापड्े निमग्न/ असि। त्वाम अहम उत्थापयामि।”
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