अरबों के देश में | Arbo Ke Dhesh Me

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Arbo Ke Dhesh Me by गोपालप्रसाद व्यास - Gopalprasad Vyaas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लेखक की अन्य रचनाएँ औुछ सच हुछ मूठ (सब्ित्, पुरस्कृत) पुस्तक में कितता सच है भौर खितना मूठ यह तो पदढकर ही जाताथा सकता ' है लेकिम हएले हास्म-साहिर्प से एक मई धैसी को जरमस दिया है । सभी संस्यरण पत्यन्तर रोचक घोर ब्पंप्य गितोद से परिपूर्ण ह विस्माद कार्टूनिस्ट शिक्षार्थी के थ्येष्प तिर्जों से पुस्तक में चार चांद सग गए ह। मूस्प ४०० 'मेंने कहए ' (सच्चिष्त, पुरस्कृत ) प्विष्ट सामाजिक चुमते हुए ध्राहित्णिक घौर राजनैतिक ध्येम्प-मिनोर से परिपूर्ण मौलिक नियंधों का सं पह है । इन मिवंधो का प्रगुवाद कई प्रादेष्चिक मायाभों मे भौ हुप्रा है। विल्मात्‌ कार्टूमकार थौ भ्हमर के सुर्दर स्वप्प-चित्र तिेधों के समान द्वास्य की सृष्डि रुरते है | वूसरा ठंस्करणष । मूह्य १.९० असे प्रा रहे है! (सघित्र पुरस्कृत) इहपें प्यास थी की 'ठाप्ता' 'छत्तब्ार अृठा हुक़का प्राहि जौ तगीवठग शोकप्रिप कविताएँ संप्रहौत है । प्ररक कविता के साथ प्रक्‍्यात ध्प॑ष्प-चिजरकार शबीरा के प्रगमोल ढार्टूम नौ दिए गए हैं। मूस्य ४०० “प्री पुनो/ (स्िश्र) हि कविता में सिप्ट हस्प की परम्परा के जम्मदांता ध्यास थो ही है। परजी मुतो उतकों प्रसित हवास्म-कमितापों का संप्रह है। य रचताएँ कूराचौ से कतकरतते भौर काइमीर से कल्पाकुमारी शक बनता के दिश्ों मैं बर किए हुए है। आया संस्करण ! मूस्य १.०० “हुमारे राष्ट्रपिता' मो गांबौ बी पर प्तेक पुरतक शिखौ गई है लेकित उतके चौबन भौर रर्पत को एक ही जगह संक्षेप में प्राकर्षक कणि-बाजी से स्पक्त करतेबासी महू प्रथम प्राभालिक पुस्तक है। धाार्य विशोगामाज ते इसकी भूमिका प्रौर टेडन जी मे इसके दो धम्द सिम है। यूछ | ४ कदम-कश्म बढ़ाए जा इसमें प्रोजपूर्ण मापा यें स्वतग्भता-संद्रास का पराजसपूर्ण ऐदिहाहि बे पस्तुत्त किया दया है। हिल्दी मैं बह बीर रधपूर्ण ख्इ-काम्य प्रपणी पए्परा ॥ एकइप मौलिक धौर राष्ट्रीय साबताप्रों सै प्ोत श्रोतहै।. मुध्य है१३ जआत्माराम एप संस, दिल्ली-६




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