एक प्रश्न | Ek Prashan
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
51.92 MB
कुल पष्ठ :
197
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भगवतीप्रसाद वाजपेयी - Bhagwati Prasad Vajpeyi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गज
पुरा होते-होते बीच में कट जाता । कभी एक के बाद दूसरा, फिर तीसरा ॥'
इसी प्रकार देर तक वह कुछ न कुछ बुदबुदाता रहता ।
पण्डित वृन्दावन उसकी इस स्थिति पर बड़े चितित रहा करते । उसे
अपने कमरे में श्रकेला न' सोने देते, जबकि उसकी श्रवस्था बत्तीस पार
कर गई थी । बहुत समय तक वह विवाह को टालता रहा था, इसलिए.
बकुल का विवाह पहले हो गया था । कभी सम्पुरणं दिन निकल जाता
और कमलेश किसीसे एक दाब्द न बोलता । उन झावश्यक कार्यों के
संबंध में वह कोई हस्तक्षेप तो न करता, जिनका निवारण सम्भव न होता,
कितु यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसी बात के लिए उससे श्राग्रह या अनुरोध
कर बैठता, जो उसकी रुचि के विपरीत होती, तो वह प्रायः सुनी-अनसुनी'
कर देता । प्रायः उसका मुख उतरा-उतरा रहता । घर के लोगों को यह
पूछने का भी साहस न होता “क्यों, तबियत तो ठीक है ?” धीरे-धीरे सब'
लोग जान गए थे कि पुछना बेकार है। उत्तर तो कुछ देगा नहीं, संभव
है, उठकर कह्टीं चल दे ।
एक बार ऐसा हुभ्रा कि वह सबके साथ खाना खाने बेठ तो गया, पर
फिर दो 'रोटी खाकर उठ पड़ा । मां का जी न माना । पुछा, “क्या बात है
बेटा ?” तो बिना कोई उत्तर दिए ्राचमन के बाद तौलिये में हाथ पोंछ
बदन में बनियान श्रौंर कमीज डालकर वह बेठक में श्रा गया ।
-« वृन्दावन ने पूछा, “सुनता हूं, श्राज तुमने खाना नहीं खाया, बड़े !”
सिर ऊपर उठाए बिना उसने उत्तर दिया, “जितनी भुख थी उतना
खा लिया ।
उसकी इस बात पर पण्डित वृ्दावन समझ गए कि और जिरह
करना बेकार है ।
उसके इस रंग-ढंग पर घर में चर्चा तो नित्य चलती, कभी सुमित्रा
और वृन्दावन में, कभी बकुल श्रौर उसकी नवपत्नी इला में, पर इस
समस्या का कोई हल न निकलता ।
वृन्दावन जानते थे कि बड़ी बहू हमारे घर जितने दिन रही, लेन-
पइसददास्ससकासपाशकासाशाइवासइ
सटपसससदावथइसाइर
अअअसदासकासपससथाायायकयायदकसससकधायससयसयासाध्ससदसायसरसपास्य
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