एक साहित्यिक की डायरी | Ek Sahityaik Ki Dayari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गजानन माधव मुक्तिबोध - Gajanan Madhav Muktibodh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तो मुप्ते भी बहा है छगा । मुप्ते रगा हि एक भाफ मनुष्पाकार बारण
कर मेरे पास-पास माठी था रही है । में आतंकिश हो उठा ।
पहुछे तो मै इस उक्प्तनम रहा कि उसका स्वागत करने स्टेशन बा
भा घरको मनहूस्तियत दूर करनेके ठपाम खोलूँ। किस्तु दमालु पत्नीने
जब घरका विद्रप दूप करनेका आश्वासन ट्यां तब मुझ थोड़ीन्सी राहुत
मिप्ती । झगर कैसबको मेरे यहाँ यागा हो पा ठो ठारसे पहलछे सूचता
देनी थी जिससे इस बड्ढ सहूप्तिवत हो जाती। पंक्षट-काऊमें मेहमान
दुश्मन होता है। विशेषकर बह जिससे मुझे पहले बहुत मतष्छो सुपर
सम्पस्न और सुम्पबस्थित स्थिति देखा हो !
क्धब बहुत बएए गया था। तमाम मास सफ़ेद हो गयें थे । चहरेपर
महरी शषौरें बस गयी थीं। गह बुश्दा हो पया था। इसके बाषणूद
शमढ़ा स्जासप्प बहुत अक्छा घा। उसका बण मरा हुआ था। मुजाओंडी
मॉंस-पेहियाँ दृढ़ थों 1 छमठा था नि पिछड़े छह-मात साठसे बह इरह
बैठक माएता भा रहा हो + छापद झप्तमे तैरमकी ्च्छो-प्रासी आदह
डाल को थी । उंपमद्गीम हो बह कमी रहीं रझा था। हिन्दु छिर भी
अब उस पहछेसे अधिक स्फूर्ति भी । ढसरी प्रशास्त-गम्भीरता कम नहीं
हुई थी ऐैडिज बोलता उपादा था। एसढ़ौ प्लारोरिक हएअस एफूलि
युबत प्रतौत होती । भुस्ते छपा हि उसने अपनी परिरिष्तियोंका श्यात्य
मजबूगो और अपिक्र सार्म-दिष्वाससे मुझावल्ला किया हैं। बह ढाफौ
हँगठा भी चा फ़म्तिपौ भौ कप्तठा बा। सुस्ते मा दि उसका मध्यम
भरी विछ्तृत हो गया है। इपर उसने काझुय पढ़ा है। मुप्त बराबर यह
माण होता एहा जि में पिष्टड एया हूँ और बह झुझस बटुत माये बड़
पया है ।
जब हम रोमों मोजगरों ईैठे तो अनियानके भौहर उसके गोरे घुषर
बसे हुए धारैरकों दैशाइए में सप्र रह मया - प्रसप्त नहीं हुआ। गारे
चोसरा क्षण बढ
User Reviews
No Reviews | Add Yours...