श्री मदद्यानंद निर्वाण अर्द्ध शताब्दी संस्करण संस्करण | Shri Madh Dayanadh Nirvan Arddh Satabati Sanskaran Satyarth Prakash

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Shri Madh Dayanadh Nirvan Arddh Satabati Sanskaran Satyarth Prakash by महर्षि दयानन्द सरस्वती - Maharshi Dayanand Sarasvati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| प्रथमस मुद्दा सः में घोड़े को छे आबे तो उसका स्वासी उस पर कड़े होकर कोसा कि से निशवुद्धि पुरुष है। गसनसमग्र में लवण झोर भोजनकाल में घोड़े के लाने का क्या प्रयोजन था ? ए प्रकरणवित नहीं ४, नहीं ना मिस समय में जिसको छाना चाहिये था उसी फो छाता | जो सुक्त की प्रकरण का विचार फरना आवश्यक था यह बने नहीं किया, इससे स्‌ एस्मे है, मेरे पास से चछा जा। इससे कया सिद्ध छक्का कि जहां शिखका प्ररण करना उचित हो वहाँ उसी जथ बग अद्णण करना चाहिये तो ऐसा हम और आप सब लोगों को गानना जोर करना नी चाहिये । छाध सना! -ओश्य खस्व्रह्म ॥ १ ॥ यजुः झ० ४० । में० १७ ॥ घे दाखय चंदा मे एस रे प्रकऊरणा से जास आाद परमश्वर के नाम ६€। ओमिल्रेतदक्नरसुद्गीथसुपासीत ॥ ९॥ छाम्दोग्य उप- निषत्‌ से० २ ] - 5 | ह् ओमिलेतदत्तर/मिद्‌ ० सब तस्योपच्याख्यानस्‌ ॥ ३ साण्ड्कक्‍्य [ सं० १] सर्च चेदा यत्पद्मासत्रन्ति दपारेसखि सर्वाशि तय यहद- दान्त | यदिच्छुन्तो त्र्मचय्य चअरान्ति तत्ते पद रंग्रद्टेण श्रवी- स्थोमित्येतत्‌॥ ४॥ कठोपनिपदि [ बल्नी २। में० १५] *. :. पशासितारं , सर्वपामणीयांसमणोरपि | वक्‍सार्स खप्तथीगस्ये विद्यासे-पुरुष परम ॥ ५४ ॥ .. एतमन्नि बदन्‍्लेके मनुसन्‍्ये प्रजापतिम। : .इन्द्रमेके परे. घाणमपरे अह्य शाश्वतम्‌ ॥ ६॥ * | मचु० आ० १५। ज्छो० १२२, १२१] से न्ह्मा स विप्सु। स रुदस्ख “शिवस्सो5क्षररुख परमः:




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