भक्ति चिंतामणि | Ratnakar Tatha Bhakti Chintamani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
740
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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सहबछा००७००७००७००७:०2०७:४०७:० अमल मल :
भूमिका। 1.
_- ०३३७
खछोक-नाईं वछ्ामि वैकूंठे योगिनां तूदये न च।
सद्भक्ता यत्र गायंति तब तिछामि नारद ॥
प्रद्ठ हो कि, जब साक्षात् श्रीमगवंद, सहाराजने श्रीगीताजीमें ऊपनी ऋआपिमझ छुएवय हेतु
भक्तिकोही बर्णन किया है छौर फिर छुपाटशिसे उसके सखाथनमी श्रीमद्धागवर्तमें प्रत्येक युगके
लिये इस भौतिस विधान कर दिये हूँ कि, सतयुगममें ध्यान, भेतामें यज्ञ, द्वापरमें पूज्य ओर '
ऋलियुगर्म तो अर्ततनद्दी सार द तो फिर परमपादव शीर अतिमुकम केवक मगवहुभाइुआददी 1
सक्तजवोका जीवन घन टठहरा क्योंकि:-
खोरठा-इरिपद भ्रीवि न दोय, बिन दरिगिण: गाये सुने । '
भवते छुटत न कोय, बिनाप्रीति दरिपद् भये॥... ७,
पसकिये मेंन मुरदास भादि भट्छाप तथा ठुझ्योदात, कवौरदास, नामदेव, गए नानश णादि न
शाबीन तथा नवीन भक्तेके कयन किय्रेहुए भगवर्ारित्रोंकों जो ्मीतक छपकर विशेष विरसुयात .
है न होने से भक्तजगोंको दुरूभ ये जे तहां से संग्रह ८र तथा फुछ छपेहुए पद भी झुनझर को ,
८ उसेके साथ मिल थे आनंद इद्धिझा हेतु दानेसे उनके बीचमें सडित करादेये दें और थबफ
कै जाठवेबार छत्वत विस्तारपूवेक पद बढा दिये ६ अपीव दोदजार परदोंके लग भय छीडाकमसे
अधित दिये गये है थीर यों ता जहां बडे बंडे ब्र्मादिक देवताओंने झाजतक प्रभुओ पिचित्र
की उीगाओंका पाराबार नहीं पाया अपनी मति अनुसार खबनेद्दी वन्न किया है तो फिर यह भंदमति
७1 फ्िस मिनतीर्मे है “य्यद्धि माझ्त गिरि मेरे उडादीं । छद्े तूछ केद्दि छेखे माददी”? इसलिये संपूर्ण
री सम्बनोसे श्तरि विनयपूर्वक प्रार्थना तथा दृढ़ विश्वास है कि जद्दों जो कुछ मूलघुरु थे उसे सुधार ,
छरंग जार दस्चिरित्र परमपवित्र समझकर अवश्य श्रवण कीतेन करेंगे मा
दोद्ा-भपनी भोर निद्दारके, क्षमाझरों अपराध ॥ ते
४, जिद तिंदद विधि दस्गियये, फदत खकक श्रुदि साध ॥ -
। क्षीर यद परम अम्ृतमत्र जो रदत्य ६ बढ बाणीसे परे है इसलिये भक्जनोंडे मिर्मेऊ हुदय्मे
झ्लापय प्रकाशमान होजायगा
इसस्र रैजिस्टरी इक खेमराज श्रीकृष्णदास “श्रीवेइटेशवर”
स्टीमू-यन्त्राव्यावीशकों समर्पध है ॥
५... रागरूनाकर तथा मक्तचिन्तामाणे संग्रहकर्चो-- * 8०
ः खाएका दास-मक्तर॒ाम, छांपरनिवासी..
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