मंगलकोष | Mangal Kosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ अजय० गु० - अज्ञवीथी० ज़ा० सी० सफ़ेदी जो छोटे अचल» ग॒० जो चल-महां सक्ता ना० पुषू पर्वतादि । अचछा ०ना० स््रौ० पृथ्री, धरती अचानक० भ्रव्य० अकरमात्‌, एकाएक नो० पु० कलेकता के निकट नगरविशेष । 7 अचानचक० श्रव्य० अकस्माव्‌, नागहान । , अचाना£ स० कि० भोजन करके मुंसधीनों । * अचार० ना० १० भ्राप इतादि फा जो बन-े, ४7 ता है, और आचार । रक्ईर अखिन्त० ग॒० चिन्तारहित, निधइक | « अचूक० यु० जो न चूके, ठीक! अचेत० य॒० संशारहित, बेहोश, मूव्छित ।- र् _ अच्छत० ना० पु० अत्षत, पावरहित | ०1०1५ अच्छा» ग॒० भला, सुढौल, छुल्दर 1 “८ अच्युताग्रज्ञ० न|० पु० श्रीवत्देवनी प्र ४: .; अछेद्द० यु० बहुत, पिद्रीलालसप्तशतिकायों+ “* धरे. रूप गुणफो गरव फिरे थ्बेह उच्ाह (51 ग्रज० ब्रव्य०ण आज, श्रम, स्ला०:-४० अज्ञात5 ग० जन्मेराहितें; भी न उपले- हे पआु 5 न ओह पर आाः ८ ) ना पु» राजा युपिष्ठिर । अजान० य॒ु० चज्ञाने, अजामिल० 1 न अजामोल० 4 पिछका जो “गारायँय कहके। ग॒० जो जीता न जासके, * है पाप अजिन०,गा० पु० विंह्यादि,का चर्म इल्‍्टः ७४६ « ५० | अज्ञीण० ना० पु० कुपच, बाई; गवीन । अच्युत० ध०,स्थिर, अ्रचलविशेष, ईश्वर 1 पं | अजों० श्रव्य० अबतक, श्रभी । अज्कूल० ग़ा० पु० ग्रच और हल,अर्थात्‌ खबर , और व्यंजन ।... श्र 5 जल, यफरा, “ईश्वर, शिव, यौवन/ औीरें!- | अजेन० गा? इ० काजल, छमा। .. 03.५. आमरण, ग॒ु० जो पैदा न होते वा उपजा | ऑज्लि० किसी नर ।. ५. . ही तल अज्ञगर० नां5 पु० बड़ा सांप) अजदहा सांप । अज्ञगुत्त० यु० अदभुत, अजायव 1 - अज्ञगन्धा० ना० खी० बगरीपौधा । ना० स्री० वीरभूमि झिले की नदीविरीष अज्ञया० ना० खी० अंजा । अजर० गु० णराप्दित अर्पात्‌: जो ' वृद्रा जार हो,ना० इ० देवता । . 5... ,. >विमा 2 अजजोक० ना०, ६० श्रयोध्याज़ी, मश्नलोक 1: ५ घ्ग्ाईी । घने ताशगणों को आकाशर्म दौलपुड़ती है.!.. अजहू १, अव्य० खषभी, अभी १ ० +क: अज्ञा० नां० स्री० बकरी, माया । | अध्यः आजि० क्रि० अजन लगाकर । अजित० श० अंनन अर्थात्‌ सुरमा शैगीये (2 के० ना स््री० रोक, प्रतिबन्ध,:सिन्‍्थुनदी | अटकना ० श० क़िं- हुकन[) लगना * अदछ्ूल० ना+ खरी० अत॒मान, प्रमाय, अन्दाज। अदकलना० स० ,कि० वाड़ना, बूमता,जांचना1 अरटका० ना>-.पु०..भ्नीजगताय जीप: पअसाद+ पकाने का पात्र वाप्रसाद। , ... ....... हा प ०५ इपफ 0 पक अटकाना० स्‌८ कि० रोकला, ठहराया: ) अव्काप० ना० ६० रोक, प्रतिबन्ध ।.;, ; 1: अटखेल० धन खिलाइ़ लंचल!। ५ २क४प्भग४ अटखेली० गाल्खो० छिलाइपेन,चेत्रसाहड॥* 1६5६ व क क.र जे | ना» स्वी० दोनों हाथका-संपुदधा (7 दक्षाएकय मराओर छक्ति पाई ८५:०५




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