चिकित्सा चंद्रोदय भाग 4 | Chikitsha Chandrodaya Bhag 4

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Chikitsha Chandrodaya Bhag 4 by बाबू हरिदास वैध - Babu Haridas Vaidhya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रमेह-चर्णन 1 श्ण्‌ ल्‍जज अजजज ० ज> अचजजण>ज>ज /पलज ००० +>सज जज पड जज जज डीजल भा ७७ (२) पित्तक ६ प्रमेद्र याप्य या कष्टसाध्य है, यानी बडो दिक्कतों से आरास होते हैं । (३ ) वातकी चार प्रमेष्ठ असाध्य हैं, इनका आशमत होना असमाव है। कफज भ्रमेह क्यों साध्य हें १ ---+०७-+-: कफज प्रमेह् इसलिये साध्य है कि, वे केवल मैद आदि धातुओं के दूषित होने से होते है. और क॒र्षण रुप एक क्रिया से हो नाश हो जाते है, यानो इनको ञ्ोषधि-क्रिया समान है। ये केवल एक “क्रफ” को ठोक करने से प्राराम हो जाते है। किसो को घटाना और किसी को बढानए नहीं पडता ! भोट--कफके दर्सों प्रमेह शरीर के दोष और दृष्प की एक ही क्रिया होने से साध्य होते हैं। यह रोग का प्रमाव है कि, प्रमेश में “दोष और दृष्य की सुहयता” साउयत्व का रण दोती है। प्रभेह के सिंया ओर रोगॉमें दृष्य की 'अ्समानता साध्यता का कारण दोत्ी है पित्तज़ प्रमेह कष्टसाध्य क्‍यों ? २३५१2 पित्तके प्रमेह इस कारण से याप्य या कष्टसाध्य है कि, वे कफ आदि सीस्य घातुश्रा के क्षय होने पर, सेठ आदि के दूपित होने से हीते है। इनकी औपधि-क्षिया कफन प्रमे्ठों को तरह समान नही जौअसमान या विषस है। थे भधुर और रूखे आदि विपर क्रिया से नाश होते है। विपम दसलिये कि, शीत्तल और मधुर पदार्थ पित्तको शान्त करते हैं, पर सेद की बढाने हैं, उधर गरम और कट पदाध मेद को नाग करने है, पर पित्तको बढाते है । ........




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