संघर्ष | Sangharsh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एक खिड़की के भीचे चारखानी जूट को तहमतें पहने चार-पाँच मुसलमान सड़े थे
पौर एक सम्बे कर के फ़रीर को भोर देख रहे थे | फ़कोौर बूढ़ा या, गैश्मा पहने था,
गले में मोदे-मोटे दानों की कंठी पहने था, सौर सामने करोले पर बैठो एक कुरूपा भपेद
स्त्री फी झोर उन्मुख होकर कह रहा था, “क्यों, तुम मादा महीं हो ? मेरे पास पैसा नहीं
हैं, मैं मीस़ माँगता हैँ, पर--” छात्ती ठोंककऑर---मैं मर्द हूं, मर्द....”” वह भोरत उप्को
गोर तिरस्कार-भरी दृष्टि से देख रहो थी, भोर जुटे हुए लोग हँस रहे थे....
नहों / यहाँ भी नही । यहाँ मी केवल वही हल्की-सो विरक्ति, एक क्षीण मल्लाहद, ..
और मणिवा के एक वावय को भनुगूंज--चमड़ी के नोचे सब एक से होते है'--लोलुप
पशु. . पुरुष भोर पुरुष, सत्ी भोर स्त्री, पुरुष भोर स्त्री,...रोखर भौर भांगे वढ गया ।
एक घोटी-सी, चियड्टों में भघनंगी लड़की ने उसको बाँह खीचकर कहा, “बावू,
पैसा दो 1!
“देखा मेरे वास नहीं है; भाग जाप्रो 1” शेखर में पाँह कटक दी; स्वर भी उसका
गठोर था।
लड़कों उसको थागों से चिपट गई । बोली--“दो, नही तो मेरे साथ प्राभो-पीछे
दे देना ।” कहकर उसने एक एक कोठरी की भोर इशारा किया, जिसमें एक लालटेन
जल रही थी....
शेपर मे भपने को छुडाया भो नहीं, देंसे ही पंजवत् भागे चलता गया। लड़की ने
उसे छोड़ दिया ।
एक भोर से भावाज्ञ भाई, “किन्नो, देख तेरे देस का भादमी णा रहा है--
घुला तो ?”
शेष्र को क्षीष-सा कौतृहल हुमा । नाम से वहु नहीं जान सका कि कौन से प्रान्त
की है वहू, जिसे सम्वोधन किया यया है प्रौर जिसका स्वदेशीय उसे समझा गया है । पर
बहू रुका नहीं, मे उसने मुड़कर देखा, यद्यपि उसने उघर से उसे लक्ष्य करके उत्पन्न बी
गई सुम्यन की जोरदार ध्वनि सुनी....
यह मोड़ पर मुड़ा हो था कि साधने से झाता हुप्ना कोई योता--फूल ले सो !!”!
गही, थे चमेली के गजरे महों थे। शेखर ने एक वार देखा, ऐसे सडशड़ाया जैसे
भोली सा गया हो, फिर स्वस्प होकर सिर भुकाएं, एक हाथ से भाँखें प्लिपाता हुप्ा
भागा--भागा... उस स्थान पर--कुमुद के गटुठे ! कुमुद जो. उसके लिए स्वच्छता का
प्रतीक यन गए थे, जो, .
यह भागा, भौर न जाने मर्यों एक निरर्षेक वाबयाथ दपौड़े को घोट को तरह बार-
थार उसे उद्ेलित करने लगा--ृशिवर घोर मानव--ईरिवर भौर मानव... .
उन कुमुद के फूर्लो ने उसके विचार की घाराप्रो को जिस मार्ग पर डाल दिया, धौर
धुट्टियों में पर न सौटने के निर्धय मे उस पर जो कैद सभा दी, उसके कारण रोशर के
सन में ज्ञीध् ही बारमीर जाने दो सातसा हीद हो उठो 1 उठके शैश्वव फा यह झुन्दर
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