रूस की चिट्ठी | Roos Ki Chitthi

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Roos Ki Chitthi  by धन्यकुमार जैन - Dhanykumar Jainरवीन्द्रनाथ ठाकुर - Ravendranath Thakur

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धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'

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रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रु रूसकी चिट्ठी मेल न हो तो या तो किसी दिन साँचा ही टूट जायगा या रु मनुष्यका छृदय ही मरकर मुद्दा बन जायगा या मशीनका पुज्ञा बना रहेगा। यहँके विद्याथियों में विभाग बनाकर हर विभागकों प्रथक प्रथक कार्य सौंपे जाते हैं छात्रावासकी व्यवस्था वे खुद ही करते हें--किसी विभागपर स्वास्थ्य-संबंधी भार है तो किसीपर भोजनादिका । जिम्मेदारी सब उन्हींके हाथोंमें है सिफ एक परिद्शंक रहता है । शान्ति-निकेतनमें मैंने शुरूसे ही इस नियम- को चलानेकी कोशिश की हे पर वहाँ सिफ॑ नियमावली ही बनंकर रह गई कुछ काम नहीं हुआ । उसका मुख्य कारण यही है कि हमने स्वर भावत ही पाठ-विभागका लक्ष्य बनाया परीक्षा पास करना और सबको उपलब्धय मात्र समभा यानी हो तो अच्छा नहोतो कोइ हज नहीं--हमारा आलसी मन जबरदस्त जिम्मे- दारीके बाहर काम बढ़ाना नहीं चाहता । इसके सिवा बचपनसे ही हम किताबें रटनेके आदी हो गये हैं । नियमावलो बनाने से कोइ लाभ नहीं नियामकोंके लिए जो श्रास्तरिक विषय नहीं वह उपेक्षित बिना हुए रह ही नहीं सकता । गांवोंकी सेवा श्रौर शिक्षा-पद्धतिके विषयमें मैंने जो-जो बातें श्रब तक सोची हैं यहाँ उसके अलावा और कुछ नहीं है है केवल शक्ति है केवल उद्यम और कायकर्ताओंकी व्यवस्था-बुद्धि । मुकके तो ऐसा मालूम पढ़ता है कि बहुत-कुछ शारीरिक बलपर ही निर्भर है--मलेरियासे जजरित श्वपरिपुष्ट शरीरकों लेकर पूरी तेजीसे काम करना असम्भव है--यहाँ इस जाड़ेके देशमें लोगोंकी हड़ी म जबूत होने से हो कार्य इतनी आसानीसे आगे बढ़ रहा है--खिर शिनकर हमारे देशके का्यकतोओंकी संख्याका निर्णय करना ठीक नहीं--उनमें से प्रत्येकको एक-एक आदमी सममना भूल है । २० सितम्बर १६३०




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