राजतरंगिणी | Rajtarngini

लेखक  :  
                  Book Language 
हिंदी | Hindi 
                  पुस्तक का साइज :  
47 MB
                  कुल पष्ठ :  
828
                  श्रेणी :  
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1. है |
उसके कुल के लोग नही हो सके । कुल का जीवन एकाकी हो गया था। कल्हण तथा उसके कुल का कोई
व्यक्ति राज अनुग्रह प्राप्त दिखायी नहीं पडता । कल्हण के पूर्व तथा परकालीन वंशजो का आठवें तरंग में
उल्लेख बिल्कुल नहीं मिलता । राजा जयसिंह के सुझाव पर कल्हण को लेखनी उठी थी, इसकी झलक
कही नहीं मिलतो ।
समुद्र-ज्ञान : कल्हण ने काइमीर मण्डल तथा समीपवर्ती स्थानों का भ्रमण किया था। वह काइमीर
के कण-कण से परिचित था | उसका भौगोलिक ज्ञान अद्भुत है। जिस प्रकार उसने भूगोल उपस्थित किया
है, उससे प्रतीत होता है कि उसने भारत का भ्रमण किया था। समुद्र तट तक पहुँचा था। उससे समुद्र
का जो वर्णन उपस्थित किया है, उसे बिता समुद्र देखे, कोई कवि केवल पुस्तक-ज्ञान से चही लिख सकता ।
ताल वृन्त, नारियल वृक्ष को छाया, डाभ, आदि का पान, अनेक बातें ऐसो है, जितसे प्रकट होता है कि
इतिहास लिखने के पूर्व उसने इतिहास-सामग्री एकत्रित करने के लिए भारत-भ्रमण किया था ।
आधुनिक वैज्ञानिको के समान कल्हण पृथ्वी को समुद्र मेखछा धारिणी लिखता है। पृथ्वी समुद्र से
वेष्ठित है। यह निविवाद हैं। कल्हण समुद्र की मर्यादा का उल्लेख करता है। यह बात समुद्र तटवर्ती
मिवासी या वहाँ गया पर्यटक ही समझ सकता है । ( रा० . १. २१५३, १. २६६ ) कल्हण दक्षिण समुद्र,
पश्चिम समुद्र, पूर्व समुद्र आदि (रा० ३ * ४७९, ४८०) तथा लवण समुद्र का उल्लेख करता है। भारत के
दक्षिण मे भारतीय सागर, पूर्व मे बगाल की खाडी तथा परिचम मे अरब सागर हैं। काश्मीर समुद्र से
सहस्रो मील दूर पर्वत-मालाओ से वेष्ठित है। कल्हण ऐसा सप्रमाण ऐतिहासिक ग्रन्थ विना भारत-भ्रमण,
क्राश्मीर के राजाओ के दिग्विजय-मार्ग तथा उनके द्वारा विजित प्रदेशों को देखे नही लिख सकता था।
मेघवाहन की सेना दक्षिण भारतीय समुद्र तट पर विश्राम कर रही थी। उस पार द्वीप था।
(रा० ३ . ३०) यह स्थान रामेश्वरम् तथा धनुष्कोटि है। चारो धाम की यात्रा करना पुनीत कर्म माना
गया है। पुरी, रामेश्वरम् तथा द्वारिका समुद्र तट पर है। कल्हण ने उत्कक किवा कॉलिंग, कर्णाट एवं
सौराष्ट्र का उल्लेख किया है। वहाँ का वर्णन भी किया है। उसने या तो यात्रा अथवा ज्ञानार्जन के लिए
भारत-भ्रमण किया था। वह काश्मीर से कन्तोज, काशी, गया होते पुरी, वहाँ से रामेश्वरम् और लौटते
समय गोकर्ण , द्वारका सौराष्ट्र होता अवन्ति से उत्तरापथ में प्रवेश कर, काश्मीर लौटा होगा ।
कल्हण ने चार समुद्रो का उल्लेख किया है (रा० ४ ' ३१०) सप्त-सिन्धु की पुरानी घारणा है ।
कल्हण ने उसे त मातकर शिव वी चार भुजाओ की उपमा चार समुद्रो से दी है। आजकल पाँच महा
समुद्रे की गणना की जाती है। प्राचीन काल में भी चार ही महा समुद्र की गणना की जाती थी ।
भारतीय सागर बाद का दिया गया नाम है । हे
कब
भारतीय सागर प्रशान्त तथा अटलातिक के मध्य तथा अण्टार्कटिक के उत्तर में पडता हैं। यदि
भारतीय समुद्र को उत्त समुद्रो का मध्यवर्ती स्थान मान ले तो कल्हण का वर्णन ठीक बैठता है । भारत महा-
सागर को उसने दक्षिण सागर कहा हैं जो दक्षिण ध्रुव तक चला गया है। (रा० ३ - १२६) रघुवंश में
कालिदास ने भी चार समुद्रो का ही उल्लेख किया हैं| राजा रणादित्य के सन्दर्भ मे कल्हण ने चोल राजा
रतिसेन को समुद्र की पूजा करते हुए चित्रित किया है। चोल राज्य सुद्र दक्षिण में पूर्वीय तथा सौराष्ट्र
पश्चिमी समुद्र तट पर था। कल्हण का यह वर्णन सत्य है | (रा० . ३ * १२ ६)
भारत पर्यटन ; काशो, कन्नौज, अवन्ति, मथुरा के अतिरिक्त और जिन स्थानों का कल्हण
					
					
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