शहीदों की टोली | Shahidon Ki Toli

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Shahidon Ki Toli by शिल्पी मिश्रा - Shilpi Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भुलाकर किया । अंगरेज स्त्री, बच्चों को अपने किले में शरण दी, लगभग सौ आदमी भी मदद के लिये भेजे कितु-इन-सबसे क्या हो सकता था, बलबाई जोर पकड़ते गए ।-उन्‍्होंने, शिर[ ही अंगरेजों फो क्ररता के साथ बध किया और महारानी के किले को घेर कर उनसे तीन लाख रुपये माँगे । रानी ने उन्हें समझाया, प्र वे कब मानने बाले थे । रानी से रुपयों के लिये आग्रह करने लगे । रानो फो सारने तक की धमकी देने लगे और किले में आाग लगाने तक फो तैयार हो गये । तब तो रानी को बहुत दुःख हुआ और उसने विवश होकर फोई उपाय न देखकर अपने गहने दे दिये और क्रिसी तरह उनसे अपनी जान उस समय छुड़ाई । अब झाँसी में अंगरेजों का कोई प्रभाव न रह गया था और एक तरह शासन उठ सा ही गया था । बलबाइयों का आतंक तो चारों ओर छा हो गया था। कुछ शास्ति मिलते पर रानी ने इस बलवे की सूचना सागर के कमिश्नर को दी । अंगरेजों ने भी जब तक फोई अंगरेज झांसी न पहुँचे तब तक के लिये रानी को ही झाँसी का शासन सौंप दिया । ज्योंही रानी ने शासन की आागडोर सम्हालो, त्योंही शिवराब ने झांसी पर आक्रमण किया । रानी के पास कोई भी भाधन न थे। इस पर भी रानी ने जिस चतुरता से शत्रु पर . विजय पाई; वह एक आश्चयें की बात थी । शिवराव अपना सा मुंह लेकर लौट गया । इतने में ओरछा के दीवान नत्ये जॉँ ने बोस हजार सवार लेकर हमला कर दिवा। रानी ने जिठिश सरकार से सहायता चाही, पर सब व्यर्थ । नत्ये खां , 'ह जोरों परथा। इस पर भी रानी ने हिम्मत न हारी। अंकल.




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