व्याकरण मयंक | Vyakaran Mayank

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बर्ण-विचार १७ बनता है उसे दीर्घ स्वर कहते हैँ ओर मिन्र-भिन स्थरो फे मेल से जो स्वर बनत हैं उन्हे स्युत्त स्थर कहते हैं| जैसे-- (कफ ) दीर्घ स्वर-अ+अच्झा | उउजऊ इनइनई | ऋफत्रस्स्ऋ हखुयछ्‌ ( सर) स्युक्त स्वर-+अ+इ>ए | आ+एजऐ अकडञ्मो | आ+भोज्ओऔ ८६क हस्थ स्वर क उच्चारण करने में जितना समय छगता है उसऊ मान या परिमाण को मात्रा कहते हैं। मात्रा का अर्थ काल का मान है।अतएवं जिस स्वर के उद्चारण में एक मात्रा छगमी है ( आर्थात्‌ हस्य स्वर ) उसे एकमात्रिक था छघु यहते हैं और जिस स्वर क उद्याग्ण में दो मात्राएँ छगती हें. ( आर्थात्‌ सधि स्वर ) उसे गुरु कद्दत हें। जैसे--भ इ, उ भादि लघु भर जा, है, ऊ भाद्रि गुरु हैं । पद्म रचने के समय मात्रिक छन्दो में मात्रा की गणना पर चिशेप व्यान दिया जाता है । इसके अतिरिक्त स्वर का एफ ओर मेद्‌ दे जिसे प्छुत् कद्दते हूँ, पर इसका उपयोग सस्कृत में पाया ज्ञाता ह्वै। कभ्ी-क्भों दिन्दी मे मां उपयोग मे आ जाता है। चिह्छान वा पुकारने से शब्द पर जोर देने के लिए शब्द के अन्तिम स्वर के बोलने मे तीन मात्राएँ छग जाती हें इसे द्वी पता! कहते हूँ। दीधध स्वर के आगे (३? छिल्न देना इसका चित्र समझा जाता है| अैसे-रे रामा ३1 हाय रे ३। दया ३1




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