हिन्दी साहित्य अभिघान | Hindi Sahitya Abhidhan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Hindi Sahitya Abhidhan by बी. एल. जैन - B. L. Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about बी. एल. जैन - B. L. Jain

Add Infomation AboutB. L. Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
. .: हिंन्दी जैन गजंट -...४. | कलकता, शुद्यवार, पीप &०८वी ए सि० सं० २७११, ता० १६ दिसम्बर १६२४,दर्ष ३०, अहूं १० का, ् + 1 -ह , समाक्ोचना | 7 .. वुदत्‌ जन शुब्दाशु व ;। ड़ रचयिता--श्रीयुत वा० विद्धरीछाल जी जेन चुलन्दशदर निवासी | धकरोशक-बा० | ५ ॥ धांतिचन्द्र फैन, बाराबह्ली । आकार बड़ा; दाग्नज्ञ छपोई सफ़ाई आदि सभी उच्दम 1 ! यह बहुत बड़ा ज्ञेनशब्द कोप अकरादि क्रम से लिखा जा रदा दे । दर्मे लमालोचनार्थ | ' जमी प्रास्प से २०८ पृष्ठ तक प्राप्त हुंआ है । इनमें केवल अकार पूर्वक प्वाब्दों का ही उरलेख ॥ , ' | है 1२०८ थें पृष्ठ में 'अशान-परीपद शब्द आया दै । जिस विभेयना शेलो और विपद्निख्पण (:, | से इछ प्रन्थ का प्रापम्भ दीख रहा है उसे देख कंर अनुमान दोता है हि अभी वेचछ अकार 1 निर्दिए शाब्द दो कई सी पृष्ठ तक औए जायेंगे | फिर आकार, इकार आदि: निर्दिए शब्दों । की बारी भी उसी विस्तार कम से आवेगी । इस अकार निर्दिष्ट शाबइ रचना से ही बहुत कुछ जैन शास्प्रों का रहस्य खुगमता से. ॥ ज्ञाना जा सकता दै। अक्षर स्वरूप, पद्ध्यात, अराक्षिक गणित, इतिद्वास, फर्मस्घरूप“निद्‌- 4 शान, भ्र॒ तबिस्तार, द्वाद्शांग रचना, स्वर्गादि लोक रंचना, ग्रुणस्थान निरूपण, पर्वों को ही तिथिय्रों के भेद चिस्तार, चक्षुद॑शेंबादि उपयोग, अक्षीणादि ऋद्धियां इत्यादि अनेफ पदार्थों | , ॥ का-स्परूप आदि बेबल एक 'अ! नियोजित दब्दसे जाने जाते हूँ । आगे जेले २ इस मद्दाग्नन्थ | - ॥ की रखना-दोगी उससे बहुत कुछ जैनघर्म निर्दिष्ट पदार्थों से एवं पुरातत्व विषयों का सूक्ष्म | दृष्टि से परिष्षान द्वो सगा। ३० 7 ८ इस प्रद्धार के ब्रत्य को जनखादित्य में बड़ी माये कमी थी जिसकी पूर्ति धपीट्रुत मा । “/( स्टर बिद्दारेलाल जी अपने असीम श्रम एवं चुद्धि विकाल से कर रहे है । यद रचना मास्टर ॥ साहब के अनेक घरों के मतनपुर्व रू स्दाध्याय का परिणाम है | इस महती कृति के छिये छेखफ '“मद्दोद्य अतीद प्रद्यंता के पात्र है । उनफी यद्द कृति जनलमाज में दो आदर की डश्टि से 1 देखी दी जायगी साथ दी जैनेतर समाज भी उससे जनधम, का रहस्य समझ्नने में बहुत । - बड़ी सद्दायता छेगा | की क ४ / नसमस्त जैव बन्चुओं को चाहिये कि | इस कोप वे अचध्य मेंगावें। हर एक भाई के लिये यह बड़े दाम क्री चस्नु है। --सद्दायक सम्पादक- न अत-+-+++++ ०७४2२ ४४८३.४२०४थ२७७--- प्री हिन्दी'खाद्ित्याभिधान * 1. 2) - . टित्तीयाचयंध . ४ “संसद्धतदिदी व्यादरण-शब्दरत्ताकर | (साक्षिप्तपद्चरंचना व फाव्यरचनासदित) | - 1 थे हिन्दी साहित्यासिधान चुदाोयाध्रयव श्री सुदत्‌ दिन्दी शब्दार्थ मद्रालागर प्रथम खण्ड ६-८ ! : ज्वू० १), स्वव्पाध शानरत्नमाला के धायी झादइकों को ॥) में ' सू० १), स्चस्पाघ पघानरत्नमाला दें स्थायी झादकों को बिना छल्य [ । | ५ | 1 प्‌




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now