सोहन काव्य कथा मञ्जरी भाग 10 | Sohan Kvya Katha Manjari Bhag 10

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Sohan Kvya Katha Manjari Bhag 10 by सोहनलाल जी - Sohanlal Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ने न स न गाकों भी के आज सिलाओ केारोगर यहां त्ञाओ जी ॥| ' वात पयभाई | ॥ अपना ईजी।, काम सब ही ही! जाये , रके कली) पहाँ पर आय जी |, हैई वहां व हलवाई हैं. आये की सौरप पहेँ दिशा छाये जी जा हल लेकर जाय | अब सबको ही ठहराय जी ॥ वहां अति पृन्दर न द्यिः बेठाय ! पास कै पेह जाय जी) 1 डः प्थान «5 हू वहां लगाये जी ॥| पृष को परोस कर जाय | मग्रिठ सबको वह रख जाय जी | ये स्वर पह पत्र के) करे न देर 3 वियां गई हैं देखे वार फेर जी) है बने अब सोचे कितनी नार | हें आ रहा कहां कस रेप वार जी। पति रैपके पक्ष पर इत विया डर; जाये कहां में जार जी ॥ ही या ई इजी पार । पारी वही आ हर बार जी ॥ गापषित क्ग ले महल में आय | नारी देखी नि लगाये जी ॥ वे; सिरे एक की जार | पासने आती ९ ह* कार जी |, कः पार वह ने जाय । जी देओ वनाय जो |, जिन्दा पहीं बन क्रय । पहीं वापित पह उतलाय जी |




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