सभा सृंगार | Sabha Sringar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : सभा सृंगार  - Sabha Sringar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अगरचन्द्र नाहटा - Agarchandra Nahta

Add Infomation AboutAgarchandra Nahta

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ८ ) गजकुमार के वणन सामान्य कोटि के है। किन्तु सर के छुः वणन ( प्र श-५€) महत्वपूर्ण सांस्कृतिक सामग्री से मरे हुए है जिनकी व्याख्या विश्तार की श्रपेक्षा रखती हैं । सिंगरणा ( श्रीकरण का मुख्य मंत्री जिसे द्राजकल की भाषा से ग्रह मंत्री कहेंगे ) और वेगरणा ( व्ययकरण का मंत्री ) मध्य कालीन सचिवो के नाम थे । सादणिया या सादणी (श्रश्वसाघनिक) नामक द्रविकारी था | राजसभा के पॉचवें वर्णन में उसे मद्दामसाणी (>मद्दासाइणीन्मददासाथनिक) कहा गया हैं । इसी प्रतग मे थ्रेयायत शब्ट उल्लेखनीय है । नाइटाजी ने सूचित किया है कि राज टथ्वार में ताम्बूल ओ्रादि देने वाला सम्मानित व्यक्ति थयायत कहलाता था । श्रीपालचरित में उसका उल्लेख है | प्र ६०-८४ पर तीन चार लादे के महाकाय मोगल का उल्लेख है । हमारे लिए यह नया शब्द है श्र प्रतोली त्रौर क्पाट के प्रसग में इसका अर्थ परिघ दा दृढ़ गला टोना चाहिए | गज वर्णन के €£ प्रकार श्रौर श्रश्व न के ७ प्रकार संग्रहीत है । इनमें सप्तागप्रतिष्टित विशेषण हाथी के लिये प्राचीन पाली अर सस्कृत साहित्य मे भी आता है। श्र्वों के नाम रंग एवं देशो के अनुसार रकक्‍खे जाते थे जिसको पर्याप्त नई सामग्री इन सचियों में है। प्र ७० पर सेगह, दलाह, डरा, आआठि नाम अस्वी फारसी परम्परा के थे । बोरिया या. बोर घोडे का उल्लेख जायसी में भी त्राया है | पूछ ७३-८५ पर युद्ध वर्णन के ७ ग्रकार मध्यकालीन वीरकाव्यों की रूढ़ शैली पर है। विभाग ३ में खत्री पुरुपो का वर्णन है । इसमें सत्‌ पुरुपों के गुणा की सूची एवं सन दुजन का परिचय सेचक है । इसी प्रकार ऐृप्ट ६६ पर उत्तम /स्त्रया की गुण सूची भी सुन्दर है। ऐट्र ११३-१४ पर मालवा, दक्षिण और गुजरात की ख्रियो के नामों की सूची पहली ही देखने को मिलती है | मेचात, मेवाड, वार साहित्य में विभाग ४ में प्रकृति वणुन का संग्रह है जिसमे प्रभात, सध्या, सूयोंदय, चन्द्रोदय और छः ऋतुद्रों के वर्खनो का संग्रह है । साहित्य में वसन्त. वर्पी और शर्ट के वर्णन तो प्राय: मिलते है, पर ग्रीप्स के वर्सन कम पाए लाते हैं । चाण के हर्पचरित मे श्रीपम का चहुत ही उदात्त और मौलिक वर्णन पाया जाता है | यहाँ उन्हालो या उप्णकाल के तीन वर्णन है । जैपे वावन पल की तोल का सोने का गोला दहकता दो वैसे ही सूर्य तय रहा था-यह कल्पना नई है । बावन ठोले माल गलाने का महावरा ही मध्यकाल में चल गया था, जैसा गर तोले पाव सती इस लोकोक्ति में सुरक्षित है । पष्ठ १२४ पर वर्ष के कारण पटशाल के य्पकने का उल्लेख हैं। पट्शाल पटशाला का रूप है लो राजपासाद के




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now