एनसीएंट इंडियन फेस्टिवल्स | Ancient Indian Festival

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गीता देवी - Geeta Devi

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सुधा सिंह - Sudha Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राचीन भारत मे बव्रत-पर्व त्यौहार एव उत्सवों की व्याख्या व्रत पर्व और त्योहार यद्यपि ये तीनों उत्सव के भिन्न-भिन्न रूप हैं तथापि किसी न किसी रूप में परस्पर विचित्र समानता पायी जाती है। व्रत का विधान बहुधा आध्यात्मिक अथवा मानसिक शक्ति की प्राप्ति के लिए चित्त की शुद्धि के लिए संकल्प शक्ति की दृढ़ता के लिए ईश्वर की भक्ति और श्रद्धा के विकास के लिए तथा अपने विचारों को उच्च एवं परिष्कृत करने के लिए किया जाता है। पर्व किसी मुख्य तिथि अथवा ज्योतिष के अनुसार ग्रहों आदि के संयोग का ही दूसरा नाम है जो किसी निर्दिष्ट समय पर आता है। त्यौहार एक सामान्य शब्द है। प्राय इसका प्रयोग व्रत और पर्व को विधि विधान से करने के लिए किया जाने लगा है क्योकि व्रत पर्व बहुधा आत्मशुद्धि और सकल्पशक्ति के उद्देश्य से जुड़ा हुआ है इसलिए मनुष्य जीवन में उसकी सतत पुनरावृत्ति होती रहे न कि केवल ज्ञान क्रीड़ा में सिमट कर रह जाये इसलिए हमारे पुराविदो ने उसे त्यौहार अथवा उत्सव का रूप दे दिया। मानव जीवन में स्वाध्याय मनन और चिन्तन तथा उपासना को भी ब्रत का एक अंग माना गया है। जिसके द्वारा मनुष्य में श्रेष्ठ गुणों का विकास और आत्म शक्ति की वृत्ति हो। व्यक्ति परिवार और समाज से भी जुड़ा हुआ है। और दोनों के ही प्रति उसके उत्तरदायित्व को विकसित करने से ही उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास कहा जाता है। व्यक्ति परिवार और समाज एक सूत्र में बंधे रहे इसीलिए सम्भवतः षोड़्श-संस्कार के माध्यम से आजीवन एक दूसरे के प्रति कर्तव्य बोध को बनाये रखने की व्यवस्था की गयी | शारवी राम प्रताप ब्रिपाठी हिन्दुओ के ब्रत पर्व और त्यौहार पृष्ठ ११-१२ उसल्‍यरत चुद ललनम




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