निराला रचनावली - २ | Nirala Rachnawali-2

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Nirala Rachnawali-2 by श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कविताएँ (1939-949) पहुला दौर प्रेम-संगीत जन-जन के जीवन के सुन्दर सुन्दर हे, सुन्दर ! तुम्हे चाहता वह भी सुन्दर रानी और कानी उन चरणों में मुझे दो शरण दलित जन पर करो करुणा भाव जो छलके पदों पर बापू के प्रति भगवान्‌ बुद्ध के प्रति मासको डायेलाग्स धूलि मे तुम मुझे भर दो तुम और मैं गादरणीय प्रसादजी के प्रति गर्म पकौड़ी मैं अकेला मैं बैठा था पथ पर श्रद्धांजलि कुकुरमुत्ता खजोहरा नूपुर के सुर मन्द रहे बादल छाये उद्वोधन अज्ञता रफटिक-शिला तुम आये गहन है यह अन्घ कारा द्रुम-दल शोभी फूल्ल नयन ये खेल सन्त कवि रविंदासजी के प्रति सहस्राब्दि 29 29 30 3 32 33 उउ 34 34 35 36 37 38 39 4] 42 43 43 4 37 62 63 64. 67 67 डे 76 76 7 78 78 क्रय अखिल-भारतवर्पीय महिला-सम्मेलन की सभानेत्री श्रीमती विजयलक्ष्मी पण्डित के प्रति 82 घेर लिया जीवों को *** 83 स्नेह-निझर वह गया है 84 मत्त है जो प्राण 84 सरण को जिसने वरा है 85 जननि मोहमयी तमिख्रा 6 तुम्ही हो शक्ति ससुदय की 86 यह है बाजार 87 भारत ही जीवन-घन 88 युग-प्रवर्तिका श्रीमती महादेवी वर्मा के प्रति 89 स्वामी प्रेमानन्दजी सहाराज 89 जवाहरलाल ! 104 गया अँघेरा 105 स्नेह-मन तुम्हारे नयत बसे 106 नाम था प्रभात ज्ञान का साथी 106 मेरे घर के पदिचिम ओर रहती है 107 सड़क के किनारे दुकान है 107 निज्ा का यह स्प्दं बीतल 108 तुम चले ही गये प्रियतम 109 चूँकि यहाँ दाना है 109 जलाशय के किनारे कुहरी थी. 110 दूसरा दौर तिलांजलि 113 पाँचक 113 माँख भाँख का काँटा हो गयी. 116 खुद्न-खबरी 117 दाशी वे थे, शद-लॉंछन 117 जीवन-प्रदीप चेतन तुमसे हुआ हमारा 118 क्रम/ 17




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