आम्रपाली | AamrPali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूँ श्रसपाली जीवन के तुम जिस स्वर में हो जीवन के में उस स्वर मे हूं नगरी है मुझे पसन्द नहीं सचमुच मे ग्राम-निवासी हूँ सरसो से रहनेंवाला हूँ भ्रमराई का ही वासी हूँ कुछ तुम भी देसी ही हो खेतों मे हिलोर लंनेवाली अपने ही हाथों से गायों को घास-पात देनेवाली तुम गागर भरनेवाली हो इस वेंगवती के कूलो पर तुम बहुत झूमनेवाली हो पीले सरसों के फूलों पर तुम हरसिगार के नीचे मिट्टी पर भी हो सोनेवाली तुम माटी के घर की कोयल हो पतझर में रोनेवाली मतवाली तुम्ही देख सकती हो मन के सभी सितारों को तुम मृदुल वाहू मे भर सकती हो सौ-सौ खिली बहारो को तुम बिना दिए के सो सकती हो केवल एक चटाई पर तुम मोती को बिखरा सकती हो चन्द्र-किरण-परछाई पर वह रूपा रजत-विनिमित है तुम भ्रास्र प्रकृति की सुषमा हो प्रिय रूपा व्योम-विहणिनि है तुम इस धरती को उपमा हो वह वेशाली के कलाकार उस स्व्णभद्र की बेटी है इस वेणुग्राम मे बेठी है पर वह नगरों में लेटी है 2 रूपा को तुम नहीं जानती वह सोने की काया है जो कुछ देख रही हो तुम सब मिथ्या हैं सब छाया है कचन की माया कसी है भ्रव तो जान गया हूँ में गाँवों में बसकर नगरो को अब पहचान गया हूँ में




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