त्रिशंकु | Trishanku

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रच .. च्रिछांकु लाख डालर का घाटा इसलिए हुआ था कि उसने विज्ञापन दर निद्चित करते समय भ्राहक-संख्या का जा अन्दाज लगाया था आहक-संख्या उससे लगभग दु्ुनी है गईं और फलतः बिकनेवाली प्रत्येक प्रति पर उसे घाटा उठाना पड़ा । इस परिस्थिति का सम्पादक के लिए क्या परिणाम होता है ? अगर वद्द पत्र का. मालिक भी है तब ते स्पष्ट है कि उसे एक विराट व्यापारिक उद्योग के अंग के रूप में प्रतियोगिता में पढ़ना पड़ेगा लेकिन अगर वह केवल वेतविक कर्मचारी है तों भी क्या वह उस श्रतियोगिता से मुक्त है १ जब तक प्रकाशन एक व्यवसाय है तब तक उसे मुनाफा देना होगा अतः सम्पादक को चाहे कितनी भी स्वतन्त्रता दी जाय एक बात की स्वतन्त्रता उसे नहीं दी जायगी-- पत्र की आहक-संख्या घटने देने की स्वतन्त्रता । पत्र का मालिक सदिच्छा रहने पर भी यह ॒ स्वतन्त्रता नहीं दे सकता यह में अपने छोटे-से अनुभव से भी जानता हूं । इस प्रकार सम्पादक का काम जनता को दिक्षित करना और प्रेरणा देना नहीं रह जाता बल्कि उसे वह देना जॉं वह माँगती है और वद्द भी अन्य यतियोगियों की अपेक्षा कुछ अधिक चरटपटे और आकर्षक रूप में । और यह तो हम पहले ही देख चुके कि जनता क्या माँगती है ... यहद्द निर्णय करने का सम्पादक ता वया वह स्वयं भी बेचारी स्वतन्त्र नहीं. थक है वह निर्णय मशीन युग द्वारा उत्पन्न हुई परिस्थिति ही उसके छिए कर देती है। तब इस विराट नियति-चक की भौषणता का कुछ अजुमान हम कर सकते हैं. --. आधुनिक युग मशीन युग हैं । मशीन के विस्तार से श्राचीन समा ज-व्यवस्था और संस्कृति नष्ट हो रही है और फुरसत नाम की एक नई वस्तु पंदा हो रहीं... है । फुरसत का समय बिताने के लिए सामग्री चाहिए लेकिन वह सामग्री एक विशेष प्रकार की ही हो सकती है क्योंकि उसी का रस लेने की सामथ्य आधुनिक मानें में बचती है । इसका परिणाम है. कि युरानी संस्कृति के मरने के साथ नई के मान नहीं बन रहे हमारा मन और आत्मा संकुचित हो रहे हैं और हम यथार्थता का सामना करने के अयोग्य बनते हैं । दूसरी और मशीन युग के साथ जो एा55 छाठ- पाटपंणा भाया है उसके लिए विज्ञापनवाज़ी आवश्यक है । विज्ञापनबाज़ी स्वयं मीन युग की विशेषताओं को उम्रतर बनाती हैं और साहित्य को सस्ता घटिया और एकरस बनाने का कारण बनती हैं । संस्कृति का मूल आधार भाषा है और भाषा का चरम उत्करष साहित्य में प्रकट .. होता हैं । अतः साहित्य का पतन संस्कृति का और अन्ततः जौवन का पतन है-- मसीन युग हमारे जौवन को सस्ता घटिया और अर्थद्दीन बना रहा है। कया हमारे लिए कोई उपाय है कोई आशा है १ क्या सादित्य का नष्ट होता हुआ चमत्कार फिर से जायत हो सकेगा ? कोई महान प्रतिभाशाली व्यक्ति तो




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