व्याकरण कौमुदी भाग 4 | Vyakaran Kaumudi Bhag 4

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Vyakaran Kaumudi Bhag 4  by नारायणचन्द्र चत्तेर्जी - Narayan Chandra Chatterjee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विमवित-निणय । झः शब्दोंके उत्तर तृतीया विभक्ति होती है। यथा अध्व-वाचक --क्रोशेनाचुबाका८घीत । काल-वायक--लिभिरहोमिः कृतम्‌ मासेन ब्याकरणमधीतमू ( पाधाधक्ा 1008 किक है कं १00१८. ) ।. मासं व्याकरणमधघीतं ( (+ फा०2207 १फ5 १600 0 ० 00006 ) न तु स्फुरति ( 9८८८ 208 06. 06200. 00007 90880 07 क्र ) यहां अध्ययनको फलप्राप्तिक्रा बोध नहीं होता है इसलिये मास शब्दके उत्तर तृतीया विभक्ति नहीं हुई । १६ । (5) येनाडर नाडिनि विकार (१ । जिस अड् विछत होनिके कारण अड्लीका विकार लक्षित होता है उस अड- वाचक शब्दके उत्तर तृतीया विभक्ति होती है। यथा चक्षुषा काण ( शक भा ०१५८ 206). पादेन खज्ज ( ..क्र्006 0 0१06 (९ कर्णन चघिरा ( 29600 ०2८ ८०7 पृष्ठ न कुब्जः ( कद 9०0 | । १७। (6) लक्षणात्‌ 1२) ।. जिस लक्षण अथात्‌ चिह्ठ ( (0&780096एड0 . डएए 0. 8 0प७० -के द्वारा काई व्यक्ति सूचित होता है उस खक्षण बोघक शब्दके उत्तर तृतीया विभक्ति होती है ।. यथा जटासि तापसमपश्यम्‌ ( 7 500 (6 शक्कर फरदी द्हा0 किक हं0. 00. कक 50660 020. तड फ्2८2 दर हे भूषामिः शिशुमदशम्‌ 7 इफ़हए 0706 ह070 008 के उमर नस्ल है सलसतससतस्पसतसरमदाकेससिसमर नमरसरिसससरससिलमतरमलवसरतसमसतशससियनिससासविदस्सरिययस्मससयास्म्टासे (१० थेनाइविकार ( पा ९४1२० ) । २). इत्यम तखचरी ( पा २1३९१ ) ।




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