आत्म - कथा भाग - ४, खंड - २ | Aatma - Katha Bhag - 4, Khand - 2

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Aatma - Katha Bhag - 4, Khand - 2 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एशियाई नवादश्ादी हैं। यहाँ दक्षिण आफ्रीकां में भी ऐसा ही' हुआ थां । शांति-रक्ो का एक फ़ानून बनाया गयां थों। उसमें एक धारा यह भी थी कि यर्दि कोई बिना 'परवाने के ट्रान्सवाल में आजाय तों' वह गिरफ्तार और 'कैद किया जा सकता है। ईंस घाया के अलुसार मुझे गिरफ्तार करने के' लिए सलाह-मशविंरा होने लगा । ' पर किसी 'को यह्‌ साहस न हुआ कि आकंर सुमसे परवोना सांगे | /' 7 ` ' ' 'इन कम्मचारियों ने डर्न' तार भे जकर भी पुछंवराया था । वहाँ से जब उन्‍हें खबरें पड़ी कि मैं तो परवाना लेकर अन्दर आया हूँ तब बेचारे निराश हो रदे † परन्तु श्स महकमे क लोग ऐसे न थे जो इस निराशां से थके केर बैठ जाते ।'हालोँ कि मैं ट्रांसवाल में आ- चुका था, परन्तु फिर भी उनके पास देसी तरकीबें थी जिनसे वे मेरा भि०, चेम्बरलेन.से मिलना सरूरःरोक सकते धेः , इस कारण सबसे पहले शिष्टमण्डल के प्रतिनिधियों के नाम मांगे गये । यो तो दक्षिण अफ्रीका में रंग-द्वेष का अनुभव जहाँ जाते वही होरहदाथा । पर यहां तो हिंदुस्तान के . जैसी गंदगी, और खटपट की बदयू आने लगी । दक्षिण आफ्रिका में आम महकमो -का कामि 'लोक-दित ॐ खयाल से चलाया जाता है इससे राजकर्म- चारियो के व्यवहार में एक प्रकार'की सरलंता और भम्नता दिखाई पड़ती थी ।' इसका लोभ थोड़े बहुत अंश में काले'पीले/चमड़े चालो को भी अपने आप मिल जाता था । पर अंब जब कि यहाँ *&




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