नूह की शायरी | Nooh Ki Shayari

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Nooh Ki Shayari by कविवर बिस्मिल इलाहाबादी - Kavivar Bismil Elahabadi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नूहर को शायरी ० मुद्दब्यत का अच्छा नतीजा सन देखा, न देखा न देखा न देखा न देखा। हजारों. अदाएँ हजारों जफाएँ, तुमे देखकर हससे क्या क्या न देखा | वो बीमारे उल्फत को देते है ताने, कि जेसा सुना हाल बेसा न देखा । यॉही दिल ॒ मुझे दे दिया उससे वापस, नसोचा न समस्या न जॉचा न देखा । कभी लुत्फ उठाए कभी गम उठाए, खुदा की खुदाई से क्या क्‍या न देखा | सिली देखने के लिये सुमको ऑखे, सगर सेसे इस पर थी झस्ला' न देखा | जो सुरत के चच्छे नजर आए ५सको, उन्हे सेसे सीरत' का अच्छा न देखा । चलो “नूह” तुमको दिखा लाएं तुसने, न सयखाना देखा न ब॒ुतखाना देखा | र न शरद हरदम जिसे सजारा हो अपने हबीव का, सी से ससीब एक हे उस खुश नसीब का | दो और हे जो मरते है श्ौरों के वास्ते दिन्न तुमको ठे ये दिल॒ नही सेरे रकीब का । ऐ आह पहले चख से दुश्मन को फेक दे 3 वो दूर का निशाना है ये हे करीब का । ये कह के वक्‍ते नजा वो बाली से उठ गए (१) हृर्‌गिज, । र) श्रादत, (३) ढोस्त, (४) दुश्मन, (४) आखिरो समय, ६) सिराद्दा । नल! १




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