वैदिक कथाओ का आलोचनात्मक अध्ययन | Vadic Kathoan Ka Alochnatamayak Adhayan

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Vadic Kathoan Ka Alochnatamayak Adhayan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकाश की आँख मिचौली को निहारा. वैदिक कवि ने उसमे स्वर्ग से सीमाहरण की उद्भावना की | उसने सूर्य को इन्द्र और चन्द्रमसू को गोतम कहा। सदैव साथ -साथ रहने के कारण रात्रि उसकी सहचरी और पत्नी है । दिन मे लीन हो जाने के कारण वह अहल्या है। वह ऋषि की कल्पना मे इन्द्र-रूप सूर्य के पास अभिसरण करती है उसकी गोद मे छिप जाती है | अदित्य उसका जार हैं | इस प्रकार सारी की सारी प्राकृतिक शक्तियो से संवद्ध-सघटनाओ नक्षत्रीय गति-विधियो सृष्टि की उत्पत्ति इल सबसे सबद्ध प्रश्नो का उत्तर उसने अपने जाने - पहचाने प्रतिदिन के जीवन मे अनुभूत घटनाओ तथा सामाजिक संबधो के अनुरूप कथाओ की कल्पना कर देने का प्रयत्न किया । इसके लिए उसने इनके सघटनाओ से सबद्ध उन शक्तियो का दैवीकरण के साथ -साथ मानवीयकरण भी किया | उसे अवयवो से सयुक्त किया और कथाओ को जन्म दिया मच तो यह है कि जैसे ही किसी प्राकृतिक - घटना से सबद्ध -शकक्‍्ति को मूर्त रूप दिया गया होगा । इस प्रकार पुरातन कथाओ का मूल तद्युगीन -मानव -मन है जिसने प्राकृतिक - शक्तियो को मानव के समान शरीरी मान लिया गया | इन्हीं कथाओ का बहुविधि विस्तार ब्राह्मणों मे प्राप्त होता है । इन ब्राह्मण- ग्रन्थों मे कर्मकाण्ड की सगति के लिये देवासुर - स्पर्धा इन्द्र -वृत्र-युद्ध देव -यजन तथा सृष्टि- रचना संबंधी कथाओं को अनेक प्रकार से कल्पित और विनियुक्त किया गया है | इसके अतिरिक्त सहिता तथा ब्राम्हणो दोनो में ही लौकिक- व्यक्तियों से सबद्ध घटनाएँ भी कथा रूप मे उपनिबद्ध हुई है । कालान्तर में उन कथाओ में पर्याप्त विकास हुआ । कभी -कभी तो कथा मूल घटनां से इतर्नी दूर चली गयी है कि मूल तथा उसकी विकसित कथा दोनों ऋण्स० १० / १० २ अहल्याये जार शतण०्घा० ३४४१८ तत्रवार्तिक - १३६२ | निरूक ७ ५-६




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