विश्व इतिहास | Vishv Itihaas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रावकथन राजनीतिक आर्थिक सामाजिक सांस्कृतिक आदि घटनाओं तथा प्रवृत्तियों के समन्वय से इतिहास की रूपरेखा बनती है। उनका पारस्परिक सम्बन्ध इतना घनिष्ठ हैं कि एक अंग का भी अभाव होने से इतिहास विकृत-सा हो जाता है। उपर्युक्त मानवीय व्यापारों की उत्पत्ति और उनका विकास प्रत्येक देश प्रदेश भूमि-भाग आदि की भौगोलिक स्थिति के अनुसार होता है। प्रकृति और मानव की क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं से इतिहास का विकास होता हैं। साघारण पाठकों के लिए संक्षिप्त सुलभ और छोटे आकार में छः सहख्र वर्षों के इतिहास का लेखा-जोखा प्रस्तुत करना एक प्रकार का दुःसाहस हैं। इसी कठिनाई से बचने के लिए लेखक इतिहास के एक अंग का ही वर्णन करना संतोषजनक समझते हैं। किन्तु अंग-विशेष के सुक्ष्मतम वर्णन से भी व्यक्ति का स्वरूप मूतिमान्‌ नहीं होता उसी प्रकार मानव-व्यापार के किसी विशेष अंग के वर्णन से इतिहास का स्वरूप प्रकट नहीं होता। लाचार छोटे चित्र के भी निर्माण करने के लिए इतिहास के मुख्य अंगों की उपेक्षा नहीं की जा सकती। स्थान तथा समय के अभाव में यह अनिवारयं हो गया कि ऐतिहासिक प्रवाह की मोटी तथा महत्त्वपूर्ण घटनाओं और विषयों पर ही ध्यान रखा जाय। और जहाँ कहीं उचित हो ऐसे संकेत कर दिये जायें जिनसे पाठकों की कल्पना एवं उत्सुकता को कुछ उत्तेजना प्राप्त हो और. उन्हें अधिक जानने की प्रेरणा हो। पुरातन इतिहास से सम्बन्धित नवीन सामग्री कभी कभी निकलती रहती है जिससे प्रचलित विचारों में काट-छाँट होती जाती हैं। कभी कभी नये दृष्टिकोण भी उपस्थित हो जाते हैं। अतः यह आवद्यक हो जाता है कि यदि हो सके तो प्रति पाँच या दस वर्ष के बाद पुरातन इतिहास की पुस्तक का संस्कार होता रहे। फिर भी मोटी तथा मुख्य घटनाओं की रूपरेखा में आमूल परिवर्तन बहुत कम पाया जाता हैं । विभिन्न भाषाओं और देशों के शब्दों का ठीक-ठीक उच्चारण तथा लेखन यों भी बड़ा कठिन हैं। पुरातन और प्राचीन देशों तथा भाषाओं का तो दुस्तर-सा है। इस समस्या के हल करने का कोई रास्ता न पाने के कारण उन संज्ञाओं और




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