विद्यार्थी जीवन रहस्य | विद्यार्थी जीवन रहस्य

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विद्यार्थी जीवन रहस्य by नारायण गोस्वामी - Narayan Goswami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उन्नति का तात्पये ३ उन्नति का भाव यहद है कि मनुष्य की शारीरिक, सानसिक ओर सामाजिक उन्नति हो । मनुश्य का उन्नात के व्यक्तिगत जीवन किस श्रकार उन्नत हो तात्पवय सकता है; पहले यही वात विचारणीय है। सनुष्य दो वस्तुओं का संघात है?-(१) शरीर (न) आात्मा- अर्थात. चह शक्ति जो शरीर: का सियन्त्रण करती दै । आत्मा के स्वाभा- बिक शुण ज्ञान आर प्रयरन हैं । इन्हीं गुणों को क्रियात्मक रूप में परिवतेन करने के लिए मनुष्य को शरीर मिला करता है! । यह वाद्य शरीर दो प्रकार की इन्द्रियों का समुदाय होता है (१) ज्ञाने- न्द्रिय (२) कर्मेन्द्रिय । इनमें से ज्ञानेन्द्रिय '्यात्मा के ज्ञान गुण और कर्मेन्ट्रिय उसके प्रयत्न शुण को साथकता देने के लिये होते हैं । हमारे शरीर की बनावट ही; आत्मा के स्वाभाविक दो ही गुणों के होने का पुष्ट प्रमाण है. । ः चाह्य शरीर के साथ जय हम शरीर के भीतरी अवयवों पर शेर भी दृष्टिपात करते हैं तो प्रकट हो जाता समस्त शरर £ के जहाँ बाह्य शरीर इन्द्रियमय है ओर के दो प्रकार के मजुष्य के इच्छित कार्य्यों का साधन है; अचयव आर उस चहाँ जा ख शोलरी थ _ के र्न्वगत दो दाँ उसके भीतरी अवयत हू भार टी कया यछत आदि उसके शरीर में होने चाले अचनिच्छित कार्य्यों के साधन हैं । जो काय्य इरादा करके किये जाते दूँ जैसे देखना, सुनना; खाना




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